Friday, March 29, 2024
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देस हमार : अनिरूद्ध द्वारा रचित एक भोजपुरी रचना

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देस हमार

पहिल जोति फूटे पूरुब से, भइल जगत उजियार
बजे भैरवी किरन बेनु पंछी के बजे सितार
माथ चढ़ावे किरन बेनु पंछी के बजे सितार
माथ चढ़ावे चरन धूर नभ वन्दन करे बयार।
निराला भारत देस हमार।।

छउके लाल हिरन गछिया में, उतरे भोर किरिनिया
सेना के जल-परी नहाये, बने सोन्हउला पनिया
पतर अँगुरी नदी-लहर से खेलत रँगे किनार।
निराला भारत देस हमार।।

चानी चादर टँकल तरेंगन चाननि रात ओढ़ावे
मुकुट हिमालय पर सोना के पानी भोर चढ़ावे
बन बसतर धानी तन सोभे, गर नदियन के हार।
निराला भारत देस हमार।।

पग धोअत मन पगल प्रेम में, रँगल सिन्धु के पानी
टूट गइल पर झुकल कहाँ इसपात सुरुख मरदानी
सुरुज आरती लहर उतारे जगमग सोना थार।
निराला भारत देस हमार।।

सोरह कला चनरमा जहँवाँ अमरित बरिसे चानी
सोना बरिसे दिल अगिआ तब चमके अउर जवानी
सूर-कबीरा-तुलसी जनमे ग्यान रतन भंडार।
निराला भारत देस हमार।।

गुरु गोविन्द सिंह-कुँअर-बहादुरशाह-देस लछिमी के
भगत, सुभाष व लाल बहादुर बलिदानी धरती के
राम-किसुन-बुध-गाँधी बन भगवान लेत अवतार।
निराला भारत देस हमार।।

रन में तनल कड़ा लोहा दिल, दया फूल से कोमल
सागर अइसन हिरदय, गंगा प्रेम पबित्तर निरमल,
साहस अटल धीर अभिलाषा, नभ के छुए पहाड़।
निराला भारत देस हमार।।

हलधर राज जनक, किसुन चरवाहा, खेत दुल्हनिया
माटी बा सोना, मेहनत धन, बोये-काटे रनिया
झील जड़े नीलम दरपन, छवि ललचे गगन निहार।
निराला भारत देस हमार।।

दुख में हँसे घटा-बिजली अस झूल गइल बा फाँसी
झरे जोतिभर रात तरेंगन मुँह पर कहाँ उदासी
मन के दिया जरे आन्ही में, कहँवाँ भइल अन्हार।
निराला भारत देस हमार।।

साँवर-गोर राज सब रितु के हिलमिल भाई-भाई
बहुरंगी भाखा बोली जय बोल भारत भाई
मंदिल-मसजिद-गुरुद्वारा-गिरजा चौमुखी चिराग।
निराला भारत देस हमार।।

सोहर-झूमर-बिरहा गा-गा सूखे देह पसेना
जहाँ सरग कसमीर देस जस मुन्दरी जड़ल नगीना
गाँव-गाँव तीरथ झुक-झुक जा मड़ई देस दुआर।
निराला भारत देस हमार।।


रचना : अनिरूद्ध

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