Home politics जदयू की कमान एक बार फिर नीतीश के हाथ में

जदयू की कमान एक बार फिर नीतीश के हाथ में

Bihar Politics:- बिहार में तेजी से सियासी बदलाव देखने को मिलने लगा हैं,दरअसल जदयू की राष्ट्रीय कार्यकरिणी की बैठक में ललन सिंह का इस्तीफा और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार के हाथ में पाट्री की कमान आने के बाद से ही बिहार में सियासी हलचल तेज हो गई हैं।

ललन सिंह ने शुक्रवार को पद छोड़ते हुए नीतिश कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा जिसे स्वीकार कर लिया गया।लोकसभा चुनाव से पहले जदयू में हुए इस बदलाव से अटकलबाजी का नया दौर शुरू हो गया है। नीतिश के फिर से जदयू अध्यक्ष बनने के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है कि आने वाले साल में 2017 के पाला बदलने जैसा राजनीतिक बदलाव दिख सकता है।नीतिश कुमार पहली बार 10 अप्रेल 2016 में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थें।इससे पहले पाट्री की कमान शरद यादव के हाथों में थी। 2015 के चुनाव में जदयू आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन ने चुनाव जीतने के बाद सरकार बनाई थी । उस समय तेजस्वी यादव पहली बार डिप्टी सीएम बनें थे। लेकिन 2017 में लेंड फार जाॅब स्केम में तेजस्वी के नाम आने के बाद नीतिश ने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ लिया और वापस एनडीए के साथ चले गए थे।

जदयू का इतिहास देखें तो नीतीश का भरोसा खोने के बाद कोई नेता टिक नहीं पाया।शरद यादव,आरसीपी सिंह,उपेन्द्र कुशवाहा इसके उदाहरण हुआ करते थे जिसमें अब ललन सिंह का नाम भी शामिल हो गया हैं।ललन सिंह ने भले यह कहकर पद छोड़ा है कि उन्हे चुनाव लड़ने के लिए समय चाहिए लेकिन अंदरखाने चर्चा यह है कि लालू यादव से बढ़ती नजदीकी की वजह से उन पर नीतीश का भरोसा कमजोर हुआ था। कहा ताे ये भी जा रहा है कि तेजस्वी को सीएम बनाने का प्रस्ताव लेकर ललन सिंह नीतीश के पास गये थे। नीतीश के मना करने के बाद ललन सिंह ने बिना नीतीश की जानकारी के 12 जदयू विधायकों की मीटिंग कर ली । ये सारी बातें ललन सिंह के खिलाफ चली गई।

चर्चा इस बात की होती रही है कि लालू यादव इस बात का दबाब बना रहे थे कि नीतीश कुमार या ताे जदयू का विलय आरजेडी में कर दे या फिर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना दें। लेकिन नीतीश के जदयू अध्यक्ष पद पर खुद से बैठने से ये तो पूरी तरह साफ हो गया है कि वो जदयू के विलय के लिए कतई तैयार नहीं हैं ।नीतीश जदयू अध्यक्ष बन जाने के बाद राजनीति उस चौराहे पर खड़े है जहां से उनके लिए संभावनाओं के चौतरफा रास्ते खुले हुए हैं। अगले कुछ दिन में कांग्रेस और आरजेडी इस फैसले के असर को समझने में लेंगी।बीजेपी की भी नजर नीतीश कुमार पर हैं। अब नीतीश ही पार्टी के मुखिया हैं।बात गठबंधन की हो या सीट बंटवारे की,सवाल सीट का हो या कैंडिडेट को टिकट देने का, सारे फैसले अब स्वतंत्र तरीके से नीतीश ले सकते हैं। इसलिए बिहार में आगे का खेल तीखा और रोमाचंक होगा जिसका सीधा असर पटना से लेकर दिल्ली तक होगा। आपकी क्या राय है नीचे कमेंट में लिखें

Facebook Comments
Exit mobile version