Tuesday, March 19, 2024
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वनक श्रृंगार

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श्वेत हिरण सन सरपट दौड़ै-ए
दिन दुर्निवार
तैयो कुसुमक कली-कली करै-ए
वनक श्रृंगार
बहै पछवा आ कि पुरबा
बेमाइ हमरे टहकत
दरकत हमरे ठोर
जेना पड़ल हो खेत बीच दरार
साझी दलान बटल
पड़ल पुरान आंगनमे नव देबाल
नई बनत आब सांगह
हमर घरक….
ई टूटल हथिसार
सागर मोनमे आस्ते-आस्ते
उतरै-ए डगमग करैत नाह
हाथ नई पतवार
आंखिमे जंगलक अन्हार
सगरो इजोत ता’ बिदा होइत छी,
खूजल अइ छोटछीन खिडकी
मुदा अपन घरक निमुन्न अइ केवाड़
के मारल गेल, पकड़ल के गेल
से कह’ आ ने कह’
भोरक अखबार
मुदा सेनुरसँ ढौरल अइ हमर चिनवार
कोइली कुहुकि-कुहुकि कहत
कखन हैत भोर आ
कत’-कत’ अइ ऊँच पहाड़
कारी सिलेट पर
लिखल अइ बाल-आखर
जेना सड़क पर सगरो
छिड़िआएल हो सिंगरहार

कवि अग्निपुष्प

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