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“जगजीवन राम: भारतीय राजनीति के समता और न्याय के प्रतीक”

जगजीवन राम, जिन्हें प्यार से “बाबूजी” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और संसदीय लोकतंत्र के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उनका जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के भोजपुर जिले के चांदवा गांव में हुआ था। वे एक दलित परिवार में जन्मे थे और भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक भेदभाव का सामना किया। बावजूद इसके, उन्होंने अपने साहस, धैर्य, और बुद्धिमानी से राजनीति और समाज में अपनी अलग पहचान बनाई।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जगजीवन राम की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में हुई, जहाँ से उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए आरा के अग्रवाल विद्यालय में प्रवेश लिया। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि थी और वे कई भाषाओं में निपुण हो गए, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, और बांग्ला शामिल हैं। जगजीवन राम ने बंकिम चंद्र चटर्जी की बांग्ला में लिखी पुस्तक “आनंद मठ” पढ़ने के लिए बांग्ला सीखी। उनकी शिक्षा की यात्रा ने उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय तक पहुँचाया, जहाँ से उन्होंने विज्ञान स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन कलकत्ता में शुरू हुआ। वहाँ उन्होंने मजदूर आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया और एक बड़ी मजदूर रैली का आयोजन किया, जिससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे बड़े नेता भी प्रभावित हुए। उनके नेतृत्व कौशल और समाज सेवा के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें बहुत कम उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक बना दिया।

1935 में, उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए “अखिल भारतीय रविदास महासभा” की स्थापना की और खेतिहर मजदूर सभा तथा भारतीय दलित वर्ग संघ जैसे संगठनों का गठन किया। उनके प्रयासों ने दलितों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

स्वतंत्रता संग्राम और संघर्ष

जगजीवन राम का स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे 1937 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और अंग्रेज़ों के खिलाफ सक्रिय रूप से संघर्ष किया। जब 1942 में महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की, तो बाबूजी ने भी इसमें भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी निडरता और संघर्ष की भावना ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में स्थापित कर दिया।

स्वतंत्रता के बाद का योगदान

भारत की आजादी के बाद, जगजीवन राम को पहले श्रम मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण कानून लागू किए जो आज भी भारतीय श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, जैसे “इंडस्ट्रियल डिसप्यूट्स एक्ट”, “मिनिमम वेजेज़ एक्ट”, और “एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट”।

इसके बाद, उन्होंने रेल मंत्री, संचार मंत्री, और कृषि मंत्री जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर सेवा की। कृषि मंत्री के रूप में, उन्होंने हरित क्रांति की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका।

रक्षा मंत्री और बांग्लादेश युद्ध

जगजीवन राम को 1970 में रक्षा मंत्री बनाया गया, और उनके नेतृत्व में भारत ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ एक सफल युद्ध लड़ा, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस युद्ध में उनकी भूमिका ने उन्हें देशभर में एक नायक के रूप में स्थापित कर दिया।

आपातकाल और कांग्रेस से अलगाव

1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का उन्होंने विरोध किया और 1977 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर “कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी” नामक एक नई पार्टी बनाई। वे मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार में उप-प्रधानमंत्री बने। उनके नेतृत्व में दलित राजनीति को एक नया आयाम मिला और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंतिम वर्ष और विरासत

बाबू जगजीवन राम का निधन 6 जुलाई 1986 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में जीवित है। उनके योगदान को आज भी सामाजिक न्याय और दलित उत्थान के संदर्भ में याद किया जाता है। उनकी बेटी मीरा कुमार भी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख हस्ती बनीं और 2009 में लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं।

जगजीवन राम का जीवन संघर्ष, समर्पण, और समाज सेवा का प्रतीक है। उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत के विकास और सामाजिक न्याय के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया। उनके आदर्श और उनके द्वारा किए गए सुधार आज भी भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा हैं।

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