चंद्रगुप्त मौर्य (जन्म: 345 ई.पू.) प्राचीन भारत के सबसे महान सम्राटों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने 321 ई.पू. में मौर्य राजवंश की स्थापना की और भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों को अपने अधीन लाया। उनका राज्यारोहण 321 ई.पू. में हुआ, और उन्होंने लगभग 24 वर्षों तक शासन किया। उनके शासनकाल का अंत 297 ई.पू. के आसपास माना जाता है। हालांकि, कुछ भारतीय तिथियों के अनुसार, चंद्रगुप्त का शासनकाल 1534 ई.पू. से शुरू होता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
चंद्रगुप्त के प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ निश्चित नहीं है, लेकिन माना जाता है कि वह एक साधारण परिवार से थे। उनके गुरु, चाणक्य (जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है), ने उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय में एक शिक्षक थे, और उन्होंने चंद्रगुप्त को सैन्य और राजनीतिक शिक्षा दी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को एक सम्राट बनाने का सपना देखा और उन्हें नेतृत्व के लिए प्रशिक्षित किया। उनकी शिक्षा के दौरान, चंद्रगुप्त ने नंद वंश के धनानंद के अत्याचारों को देखा, जिससे उनके मन में उसे हटाने का दृढ़ निश्चय हुआ।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
चंद्रगुप्त ने चाणक्य के मार्गदर्शन में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उनके शासनकाल के पहले वर्ष में ही, उन्होंने धनानंद के शासन को समाप्त कर दिया और पाटलिपुत्र (आज का पटना) में अपना शासन स्थापित किया। चंद्रगुप्त का यवनों (ग्रीक शासकों) से भी सामना हुआ। सिकंदर के आक्रमण के समय, चंद्रगुप्त ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और यवनों को भारत से बाहर निकालने में सफल रहे। उनके इस संग्राम के परिणामस्वरूप, पंजाब और सिंध उनके नियंत्रण में आ गए।
उनका सबसे महत्वपूर्ण युद्ध ग्रीक शासक सेल्यूकस निकेटर के साथ हुआ। सेल्यूकस, सिकंदर के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के कुछ हिस्सों पर अधिकार करना चाहता था, लेकिन चंद्रगुप्त की ताकत के आगे उसे हार माननी पड़ी। अंततः, सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त के साथ संधि की और उसे एरिया, अराकोसिया, परोपमिसादे और जेद्रोसिया (आधुनिक काबुल, कंधार और बलूचिस्तान) जैसे बड़े क्षेत्र सौंपे। इसके बदले, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी दिए। इस संधि को मजबूत करने के लिए, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी हेलेना से विवाह किया।
मौर्य साम्राज्य की सैन्य शक्ति
चंद्रगुप्त के समय में मौर्य साम्राज्य की सैन्य शक्ति अद्वितीय थी। उनके पास 600,000 पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथियों की विशाल सेना थी। उनके राज्य की रक्षा और विस्तार में यह सेना अत्यंत प्रभावी साबित हुई। ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार, चंद्रगुप्त की सेना इतनी विशाल और संगठित थी कि उसने पूरे उपमहाद्वीप को नियंत्रित किया।
चंद्रगुप्त का जैन धर्म अपनाना और अंत
अपने जीवन के अंतिम दिनों में, चंद्रगुप्त ने सत्ता का त्याग कर जैन धर्म अपना लिया। जैन परंपराओं के अनुसार, वह अपने गुरु भद्रबाहु स्वामी के साथ श्रवणबेलगोला चले गए। वहाँ उन्होंने उपवास द्वारा अपने जीवन का अंत किया। जैन धर्म के अनुयायी उन्हें एक महान साधक मानते हैं, जिन्होंने न केवल राजनीतिक, बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र में भी महानता हासिल की।
चंद्रगुप्त मौर्य के अभियानों और संघर्षों का सारांश
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन युद्धों और संघर्षों से भरा हुआ था, जिन्होंने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप को एकीकृत किया बल्कि एक विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना भी की। यहाँ चंद्रगुप्त मौर्य के प्रमुख अभियानों और संघर्षों की तिथियों के साथ जानकारी दी जा रही है:
संघर्ष | वर्ष | पक्ष | विपक्ष | परिणाम |
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मैसेडोनियन अभियान | 305–315 ईसा पूर्व | मौर्य साम्राज्य | मैसेडोनियन साम्राज्य | मौर्य विजय: चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंधू घाटी और उत्तर पश्चिम भारत के मैसेडोनियन स्ट्रैपीज को जीत लिया।[38] |
यूनानी गवर्नर्स पर कार्रवाई | 315-317 ईसा पूर्व | मौर्य साम्राज्य | मैसेडोनियन साम्राज्य | मौर्य विजय: चंद्रगुप्त ने शेष मैसेडोनियन क्षत्रपों को हराया और उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर निकाला।[40] |
नंद साम्राज्य पर विजय | 322-320 ईसा पूर्व | चंद्रगुप्त मौर्य | नंद साम्राज्य (धननंद) | मौर्य विजय: चंद्रगुप्त ने धननंद को हराकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने नंद राजकुमारी दुर्धरा से विवाह किया।[42][44] |
सेल्युकस-चंद्रगुप्त युद्ध | 305–303 ईसा पूर्व | मौर्य साम्राज्य | सेल्युकस साम्राज्य | मौर्य विजय: सिन्धु संधि के तहत सेल्युकस ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रगुप्त से कराया और मौर्य साम्राज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। |
महत्वपूर्ण युद्ध और अभियानों का विवरण
मैसेडोनियन अभियान (305–315 ईसा पूर्व)
- चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के द्वारा छोड़े गए मैसेडोनियन स्ट्रैपीज (राज्यपालों) के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने सिंधु घाटी और पंजाब के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, जो पहले यूनानी नियंत्रण में थे।
- उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों में यूडेमस और पीथॉन शामिल थे, जो अंततः चंद्रगुप्त से हार मानकर आत्मसमर्पण कर गए।[38]
यूनानी गवर्नर्स पर कार्रवाई (315-317 ईसा पूर्व)
- सिकंदर की मृत्यु के बाद, चंद्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिमी भारत में बचे हुए यूनानी गवर्नर्स को हराया।
- निकानोर और फिलिप की हत्या करके उन्होंने शेष क्षेत्रों पर नियंत्रण प्राप्त किया, जबकि अन्य दो गवर्नर्स, यूडेमस और पीथॉन, बेबीलोन लौट गए।
नंद साम्राज्य पर विजय (322-320 ईसा पूर्व)
- चंद्रगुप्त ने मगध के शक्तिशाली नंद साम्राज्य को हराया और धननंद को सत्ता से हटा दिया।
- इस विजय के बाद, उन्होंने नंद वंश की राजकुमारी दुर्धरा से विवाह कर मौर्य वंश की नींव रखी।
सेल्युकस-चंद्रगुप्त युद्ध (305–303 ईसा पूर्व)
- इस युद्ध में चंद्रगुप्त मौर्य और यूनानी शासक सेल्युकस के बीच संघर्ष हुआ।
- अंततः, सेल्युकस ने सिन्धु घाटी के क्षेत्रों को मौर्य साम्राज्य के अधीन कर दिया और अपनी बेटी का विवाह चंद्रगुप्त से कराया।
- बदले में, चंद्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 युद्ध हाथी दिए और दोनों साम्राज्यों के बीच एक राजनयिक साझेदारी की शुरुआत हुई।
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने साहस, सैन्य कौशल और राजनीतिक चातुर्य से भारतीय इतिहास में एक नई दिशा दी। उनके अभियानों और संघर्षों ने न केवल मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप को एक मजबूत और संगठित शक्ति के रूप में स्थापित किया।
मौर्य इतिहास के स्रोतों पर आधारित चर्चा
मौर्य साम्राज्य के इतिहास के अध्ययन के लिए कई प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं, जिनमें जैन, बौद्ध, वैदिक ग्रंथ, अभिलेख, और प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तकें शामिल हैं। इन स्रोतों ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना, शासन प्रणाली, और समाज पर गहरी जानकारी दी है। आइए इन स्रोतों पर एक विस्तृत नज़र डालते हैं।
1. जैन ग्रंथ
मौर्य इतिहास पर जैन ग्रंथों का भी विशेष महत्व है। जैन धर्म के इन ग्रंथों में चंद्रगुप्त मौर्य और उनके वंश के बारे में कई विवरण मिलते हैं। मुख्य जैन ग्रंथ इस प्रकार हैं:
- बृहतकल्प सूत्र
- बृहत्कथाकोश
- आराधना सत्कथाप्रबंध
- श्रीचंद्रविरचित कथाकोश
- नेमिचंद्रकृत कथाकोश
- परिशिष्टपर्वन्
- विविधतीर्थकल्प
- पुण्याश्रवकथाकोश
- निशीथ सूत्र
चर्चा: इन ग्रंथों में चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन के कुछ पहलू जैसे उनके दीक्षा ग्रहण करने, जैन धर्म में उनकी रुचि, और अंततः श्रवणबेलगोला में उनके संन्यास की कहानियाँ मिलती हैं।
2. बौद्ध ग्रंथ
बौद्ध धर्मग्रंथ भी मौर्य साम्राज्य के इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये ग्रंथ अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे शासकों के बौद्ध धर्म में योगदान के बारे में विस्तार से बताते हैं। कुछ प्रमुख बौद्ध ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
- महावंश
- दीपवंश
- महाबोधिवंश
- त्रिपिटक
- दिव्यावदान
- अशोकावदान
- विनयपितक
- महावंसटीका (वंसत्थप्पकासिनी)
- उत्तरविहार अट्ठकथा
चर्चा: बौद्ध ग्रंथ विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म के विकास और विस्तार को प्रदर्शित करते हैं। अशोक के धर्म परिवर्तन और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान, इन ग्रंथों में विशद रूप से वर्णित है।
3. वैदिक ग्रंथ
मौर्य काल से संबंधित वैदिक ग्रंथों में मौर्य शासकों के समय की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर जानकारी मिलती है। ये ग्रंथ मौर्य साम्राज्य की संरचना और धार्मिक गतिविधियों पर भी प्रकाश डालते हैं। कुछ प्रमुख वैदिक ग्रंथ इस प्रकार हैं:
- मत्स्य पुराण
- विष्णु पुराण
- भागवत पुराण
- भविष्य पुराण
- ब्रह्मांड पुराण
- वायु पुराण
- कामंदक नीतिसार
चर्चा: वैदिक ग्रंथों में वर्णित राजतंत्र, प्रशासनिक ढांचे और नीतियों ने मौर्य साम्राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से समझने में सहायता की है।
4. अभिलेख / शिलालेख
मौर्य साम्राज्य की वास्तविकता को प्रमाणित करने वाले अभिलेख भी महत्वपूर्ण हैं। अशोक के शिलालेख विशेष रूप से बौद्ध धर्म के प्रसार और उनके शासन की नीतियों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं। कुछ प्रमुख अभिलेख हैं:
- अशोक के शिलालेख, गुफ़ा अभिलेख, स्तंभ अभिलेख
- खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख
- रुद्रदामन् का गिरनार शिलालेख
चर्चा: अशोक के शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ अपने प्रजा के कल्याण के लिए भी कई सुधार किए। अशोक के शिलालेखों ने तत्कालीन समाज और शासन के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
5. प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तकें
प्राचीन विदेशी लेखकों और इतिहासकारों ने भी मौर्य साम्राज्य पर प्रकाश डाला है। इन लेखकों के वृत्तांत मौर्य काल के बारे में बाहरी दृष्टिकोण से जानकारी देते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
- अर्थशास्त्र (कौटिल्य): मौर्य काल की अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक नीतियों का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ।
- मुद्रा राक्षस (विशाखादत्त): चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के विस्तार के समय की राजनीतिक घटनाओं का विवरण।
- इंडीका (मेगास्थेनेस): विदेशी पर्यवेक्षक मेगास्थेनेस द्वारा मौर्य साम्राज्य के समाज, शासन और संस्कृति पर आधारित वृत्तांत।
- फाहियान की यात्राएँ (फ़ा हियान): मौर्य काल के बाद के समय की जानकारी प्रदान करने वाला एक प्रमुख स्रोत।
- सी-यू-की (ह्वेन त्सांग): भारत में बौद्ध धर्म के अध्ययन के दौरान लिखे गए वृत्तांत।
चर्चा: विदेशी यात्रियों और इतिहासकारों द्वारा लिखे गए वृत्तांत मौर्य साम्राज्य की बाहरी छवि को प्रस्तुत करते हैं। मेगास्थेनेस की इंडीका में मौर्य शासन की प्रशासनिक संरचना और नगर व्यवस्था पर विस्तृत जानकारी मिलती है, जो आज भी एक प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत मानी जाती है।
सारांश: मौर्य साम्राज्य के इतिहास को समझने के लिए जैन, बौद्ध, वैदिक ग्रंथों, अभिलेखों और प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तकों का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये विभिन्न स्रोत साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, और धार्मिक पहलुओं पर गहराई से जानकारी प्रदान करते हैं।