परिचय
फाल्गु नदी, जो बिहार के गयाजी में बहती है, हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पवित्र जल स्रोत है। इस नदी के किनारे भगवान विष्णु का प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर स्थित है, जो तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।फल्गु नदी पर भारत का सबसे लंबा रबर बांध “गायाजी डेम”
नदी का मार्ग
- उत्पत्ति: फाल्गु नदी का उद्गम बोधगया से लगभग 3 किलोमीटर नीचे लीलाजन और मोहना के संगम से होता है।
- चौड़ाई: प्रारंभ में, यह 270 मीटर चौड़ी होती है, और गयाजी की ओर बढ़ते हुए इसकी चौड़ाई 820 मीटर तक बढ़ जाती है।
- भूगोल: यह नदी ऊँची चट्टानों के बीच बहती है, जहाँ कई पक्की सीढ़ियाँ नदी के तल तक जाती हैं। इसके बाद यह लगभग 27 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है, जहाँ यह पुनः मोहना नाम से जानी जाती है और अंत में पुनपुन नदी में मिल जाती है।
धार्मिक महत्व
- तीर्थयात्री: गयाजी के पास बहने वाली फाल्गु नदी का क्षेत्र हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र है।
- पिंडदान: तीर्थयात्री यहाँ अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं, जो मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
- पितृपक्ष: आश्विन महीने के घटते चंद्रमा के 15 दिनों में, पितृपक्ष का आयोजन होता है, जो पिंडदान के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- प्रारंभिक अनुष्ठान: पिंडदान करने वाले भक्तों के लिए अनिवार्य है कि वे अपने सिर मुंडवाएं और नदी में पवित्र स्नान करें।
पौराणिक कथा
- शापित नदी: रामायण में उल्लेख है कि सीता ने फाल्गु नदी को शापित किया था, जिसके कारण इसका जल सूख गया।
- कथा का विवरण: जब राम अपने भाइयों और सीता के साथ अपने पिता दशरथ के लिए पवित्र अनुष्ठान करने गयाजी आए, तब सीता ने बालू के पिंड दिए। जब दशरथ ने इसका जिक्र किया, तो सीता ने गवाहों के सामने यह कार्य किया।
- शाप का प्रभाव: सीता के क्रोध में, फाल्गु नदी गयाजी में जलहीन रहने का शाप मिला। इसके अलावा, गाय, तुलसी, और ब्राह्मणों को भी शापित किया गया।
मंगला गौरी मंदिर बिहार के गया में स्थित है और फल्गु नदी के तट पर स्थित है।
निष्कर्ष
फाल्गु नदी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसकी पौराणिक कथाएँ और सांस्कृतिक धरोहर भी इसे विशेष बनाती हैं। यह नदी तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ वे अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं और हिंदू धर्म की गहरी जड़ों को समझते हैं।