Tuesday, December 3, 2024

गया – ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रमुख केंद्र

Gaya बिहार राज्य के गया जिले का मुख्यालय और दूसरा सबसे बड़ा शहर है, जो अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। यह नगर हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के लिए गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित यह स्थान प्राचीन काल से सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र रहा है। गया तीन दिशाओं से मंगला-गौरी, शृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि जैसी पवित्र पहाड़ियों से घिरा हुआ है, और इसके पूर्व में बहने वाली फल्गू नदी इसे और भी पवित्र बनाती है। मगही भाषा बोलने वाले लोग यहां निवास करते हैं, और हर साल लाखों भारतीय और विदेशी पर्यटक और श्रद्धालु इस नगर में आते हैं, जिससे यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल और पर्यटक आकर्षण बन चुका है।

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विवरण

गया, बिहार के कीकट प्रदेश के धर्मारण्य क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है, जिसे मुख्य रूप से तीर्थयात्राओं के लिए जाना जाता है। यह नगरी वाराणसी की तरह ही धार्मिक महत्ता रखती है, खासकर पितृपक्ष के अवसर पर जब यहां हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिए एकत्र होते हैं। गया शहर सड़क, रेल और वायु मार्ग से भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है, और यहां नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है जो थाईलैंड सहित कई देशों से जुड़ा है। बोधगया, जो भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का स्थल है, गया से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

गया में हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विष्णुपद मंदिर अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो भगवान विष्णु के पवित्र पदचिह्नों पर निर्मित है। पुराणों में कहा गया है कि यहां फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने से मृतात्माओं को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। गया का मौसम विविधता लिए हुए है, गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और सर्दियों में सामान्य ठंडक रहती है, जबकि मानसून के समय का दृश्य बेहद खूबसूरत होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गयासुर नामक राक्षस, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था, ने अपनी भक्ति से विष्णु को प्रसन्न कर मनचाहा वरदान पाया। यज्ञ करते समय दर्शन से जंतुओं के पाप मुक्त होने की घटना ने भगवान विष्णु को धरती के भीतर गयासुर को भेजने पर विवश किया। यहीं पर भगवान विष्णु के पदचिह्न अंकित हुए, जिन्हें आज भी विष्णुपद मंदिर में देखा जा सकता है। इस तीर्थस्थल की पवित्रता और महत्ता को आदरपूर्वक ‘गया जी’ के नाम से जाना जाता है, और यह स्थान देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

गया का ऐतिहासिक महत्व

गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में मिलता है और इसे मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर माना जाता था। खुदाई में सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र भी पाया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गया प्राचीन समय से एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल रहा है। फाह्यान और ह्वेनसांग जैसे यात्रियों के वर्णनों में इसे एक समृद्ध धर्म क्षेत्र के रूप में उल्लेखित किया गया है।

अहिल्याबाई का पुनर्निर्माण और मंदिर की महत्ता

1787 में, होल्कर वंश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। मंदिर का स्थापत्य अद्वितीय है और इसमें विष्णु भगवान के पैरों के निशान भी शामिल हैं। यह स्थान हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, विशेष रूप से पितृपक्ष के समय, जब लोग यहां अपने पितरों की शांति के लिए पिंडदान करते हैं।

बोधगया और गौतम बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति

गया के पास स्थित बोधगया बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ गौतम बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करके ज्ञान की प्राप्ति की थी। यह स्थल आज विश्वभर के बौद्ध अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। मौर्य सम्राट अशोक ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसे महाबोधि मंदिर के रूप में जाना जाता है। बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति से लेकर उनके अनुयायियों द्वारा इस स्थल की महत्ता बनाए रखना आज भी जारी है।

सम्राट अशोक और बोधगया का विकास

सम्राट अशोक ने बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति स्थल पर कई महत्वपूर्ण निर्माण कराए, जिनमें प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर और वज्रासन शामिल हैं। बोधगया को उरुवेला के नाम से भी जाना जाता था और यह बुद्ध के समय से लेकर आज तक बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल बना हुआ है। अशोक के द्वारा निर्मित मंदिर और स्तूप आज भी बौद्ध अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

महाबोधि मंदिर और बुद्ध की मूर्ति की मान्यता

महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति को लेकर एक पौराणिक कथा है। माना जाता है कि यह मूर्ति स्वयं बुद्ध द्वारा निर्मित की गई थी। बौद्ध धर्म में इस मूर्ति को अत्यधिक प्रतिष्‍ठा प्राप्त है और इसे नालंदा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी स्थापित किया गया था।

गया और बोधगया का धार्मिक महत्व

बोधगया को बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, जबकि विष्णुपद मंदिर हिंदू धर्म में विष्णु भगवान की पूजा का प्रमुख केंद्र है। गया की यह धार्मिक यात्रा हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के अनुयायियों के लिए एक विशेष स्थान रखती है।

विष्णुपद मंदिर

विष्णुपद मंदिर:बिहार के गया शहर में स्थित, फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर है और यह भगवान विष्णु के पवित्र पदचिन्हों पर बनाया गया माना जाता है। यह मंदिर लगभग 30 मीटर ऊंचा है, जिसमें आठ चांदी की परत चढ़ी खंभे हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं, जिन्हें श्रद्धालु अत्यधिक श्रद्धा से पूजते हैं। इस मंदिर का नवीकरण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने 1787 में करवाया था, जिससे यह एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर बन गया है। विशेषकर पितृपक्ष के अवसर पर, यहां श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ जुटती है, जो अपने पितरों के लिए पूजा और तर्पण करने आते हैं।

रामानुज मठ

जिसे भोरी के नाम से जाना जाता है, स्वामी धरणीधराचार्य द्वारा स्थापित एक प्रमुख वैष्णव मठ है। यह मठ वैदिक शिक्षा और हिंदू आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां श्रद्धालु और भक्त धार्मिक शिक्षाएं ग्रहण करते हैं। मठ में धार्मिक समारोह, सत्संग और भक्ति रस की अनुभूति होती है, जिससे यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक साक्षात्कार का साधन बन जाता है। यहाँ की शांतिपूर्ण वातावरण और भक्ति भाव से ओतप्रोत वातावरण श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। रामानुज मठ हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जो उनकी आस्था और परंपराओं को बनाए रखने में मदद करता है।

बाबा सिद्धनाथ, बराबर

बराबर पर्वत पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर, सिद्धनाथ तथा दशनाम परंपरा के नागाओं के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। इस मंदिर के पास नारद, लोमस जैसे ऋषियों की गुफाएं हैं, जिनमें प्राचीन ऋषियों ने तप किया था। विश्व भर में बराबर की गुफाएं उन कुछ गुफाओं में से एक हैं, जिन्हें पत्थरों को प्राकृतिक रूप से तराशकर बनाया गया है। यह पर्वत माला लगभग 1100 फुट ऊंची है और इसे आमतौर पर मगध का हिमालय कहा जाता है। इसी पर्वत माला के बीच बाबा सिद्धनाथ मंदिर स्थित है, जिसे वाणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर मूल रूप से सिद्धेश्वर नाथ मंदिर के रूप में विख्यात है और इसे विश्व के प्राचीनतम शिव मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में महान शिव भक्त वाणासुर द्वारा कराया गया था, जो मगध के राजा जरासंध के परम मित्र थे।

दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद अलग है, लेकिन बोध गया मंदिर के पीछे जामा मस्जिद नामक एक मस्जिद है, जो बिहार की सबसे बड़ी मस्जिद है और लगभग 200 साल पुरानी है। यहाँ हजारों लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं। मुख्य नगर से 10 किलोमीटर दूर गया-पटना मार्ग पर स्थित यह पवित्र धार्मिक स्थल है, जहाँ 9वीं सदी हिजरी में चिशती अशरफी सिलसिले के प्रख्यात सूफी संत हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ ने खानकाह अशरफिया की स्थापना की थी। आज भी पूरे भारत से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, और हर साल इस्लामी मास शाबान की 10 तारीख को हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ का उर्स मनाया जाता है।

प्राचीन और अद्भुत शिव मंदिर (चोवार गाँव)

चोवार गाँव, गया शहर से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व में स्थित है, और यह अपने अद्भुत शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में सैकड़ों श्रद्धालु बाबा बालेश्वरनाथ को जल चढ़ाते हैं, लेकिन आज तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि यह जल कहाँ जाता है। इस चमत्कार के पीछे का कारण जानने के लिए हजारों वर्षों से वैज्ञानिकों ने यहां अध्ययन किया है, और उन्होंने भी इसे भगवान शिव का चमत्कार मान लिया है।

कुछ साल पहले सड़क निर्माण के दौरान यहाँ एक विशाल घड़ा मिला, जिसमें हजारों शुद्ध चाँदी के सिक्के निकले थे। इस गाँव में अष्टधातु की अनेक प्राचीन मूर्तियाँ भी पाई जाती हैं। चोवार गाँव की शोभा बढ़ाने के लिए यहां एक अद्भुत ताड़ का पेड़ भी है, जिसकी त्रिशाखाएँ भगवान शिव के त्रिशूल के आकार की प्रतीत होती हैं। लोग दूर-दूर से इस पेड़ को देखने के लिए आते हैं।

इसके अलावा, यहाँ एक प्राचीन कुआँ भी है, जिसमें समय-समय पर पानी का रंग बदलता रहता है। यह गाँव धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, और इसकी अद्भुतता इसे विशेष बनाती है।

कोटेश्ववरनाथ

कोटेश्ववरनाथ एक अति प्राचीन शिव मंदिर है, जो मोरहर-दरधा नदी के संगम किनारे, मेन-मंझार गाँव में स्थित है। हर वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला लगता है, जहाँ श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। गया से इस मंदिर तक पहुँचने के लिए, आपको लगभग 30 किमी उत्तर पटना-गया मार्ग पर स्थित मखदुमपुर से पाईबिगहा होते हुए जाना होता है। गया से पाईबिगहा के लिए सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है, और पाईबिगहा से मंदिर की दूरी लगभग 2 किमी है।

किवदंती है कि प्राचीन काल में बाण पुत्री उषा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। लेकिन, प्राप्त लिखित इतिहास और पुरातात्विक विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि इस मठ की स्थापना 6वीं सदी में नाथ परंपरा के 35वें सहजयानी सिद्ध बाबा कुचिया नाथ द्वारा की गई थी। इसीलिए इसे कोचामठ या बुढवा महादेव भी कहा जाता है।

माना जाता है कि मेन के पाठक बाबा और मंझार के रामदेव बाबू को यहाँ भगवान शिव का साक्षात्कार हुआ था। वर्तमान में, मंदिर के जीर्णोद्धार का स्वप्नादेश भगवान शिव ने रामदेव बाबू के पुत्र भोलानाथ शर्मा जी को दिया। जातिभेद के वैमनस्य से पीड़ित क्षेत्र में, शिव जी की प्रेरणा से सांस्कृतिक और साहित्यिक एकता का प्रयास भोलानाथ शर्मा, छ्त्रवली शर्मा, नित्यानंद शर्मा आदि ने प्रारंभ किया। इस सांस्कृतिक एकता की यात्रा ने मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ-साथ इसे एक बृहद सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।

सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर, गया के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के 20 किलोमीटर उत्तर और रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है और सोन नदी के किनारे स्थित है।

विशेषताएँ:

  • तीर्थ यात्रा: दीपावली के छह दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहाँ तीर्थयात्रियों की जबर्दस्त भीड़ होती है।
  • मेला: इस अवसर पर यहाँ एक बड़ा मेला भी लगता है, जिसमें श्रद्धालु और पर्यटक शामिल होते हैं।

सूर्य मंदिर का यह महत्व इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक विशेष स्थान प्रदान करता है।

ब्रह्मयोनि पहाड़ी

इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए ४४० सीढ़ियों को पार करना होता है। इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्‍वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यह मारनपुर के निकट है।

ऊपर से दृश्य बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देने वाला है और एक मनोरम दृश्य प्रदान करता है।

मंगला गौरी मंदिर

मंगला गौरी मंदिर, पहाड़ पर स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो मां शक्ति को समर्पित है। यह स्थान 18 महाशक्तिपीठों में से एक माना जाता है और यहाँ पूजा करने वाले भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होने की मान्यता है15वीं सदी में स्थापित, मंगला गौरी मंदिर देवी सती को समर्पित उन 52 महाशक्तिपीठों में शामिल है जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। इसे परोपकार की देवी माना जाता है, और यहाँ हर वर्षा-ऋतु में विशेष पूजा आयोजित की जाती है।मंदिर परिसर में मां काली, गणेश, हनुमान, और भगवान शिव के भी मंदिर स्थित हैं। नवरात्र के दौरान यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जिससे मंदिर का वातावरण जीवंत और मनोरम बन जाता ह

दुन्गेश्वरी गुफा मंदिर

स्थान
दुन्गेश्वरी गुफा मंदिर गया शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर, दुन्गेश्वरी पहाड़ियों के ऊपर स्थित है।

महत्व
यह गुफा मंदिर विशेष रूप से उस स्थान के रूप में जाना जाता है जहाँ बद्ध जी ने ज्ञान प्राप्ति के दौरान कई वर्षों तक ध्यान और साधना की थी। इसे “महाकाल की गुफाएँ” भी कहा जाता है, जो इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाता है।

विशेषताएँ
गुफा मंदिर की अद्भुत संरचना और प्राकृतिक वातावरण श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहाँ के शांतिपूर्ण माहौल में ध्यान और साधना करने के लिए अनुकूल स्थितियाँ हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाते हैं।

मुचालिंदा सरोवर

मुचालिंदा सरोवर:बोध गया के मोचारिम इलाके में स्थित एक पौराणिक महत्व का स्थान है, जहाँ सर्वर के बीचों-बीच भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थित है, जिसे नाग देवता मुचालिंदा की प्रतिमा ने ढका हुआ है। कहा जाता है कि मुचालिंदा ने भगवान बुद्ध को तूफ़ान से बचाया था, और यह प्रतिमा इस घटना का प्रतीक है। मुचालिंदा सरोवर बोध गया की सबसे पावन जगहों में से एक मानी जाती है, जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद लगातार छठे सप्ताह ध्यान में बिताया था। इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता और प्राकृतिक सुंदरता श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है।

शाही भूटान मठ

गया में स्थित एक महत्वपूर्ण बौद्ध मठ है, जिसका निर्माण भूटान के राजा द्वारा कराया गया था, जिससे इसका नाम “भूटान मठ” पड़ा। इस मठ की दीवारों पर की गई कलाकृतियाँ अद्वितीय हैं, जो बौद्ध धर्म की गहरी शिक्षाओं और इतिहास को दर्शाती हैं। मठ का वातावरण शांति और ध्यान के लिए उपयुक्त है, और यह बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ की कलाकृतियाँ और स्थापत्य कला बौद्ध संस्कृति की समृद्धि को दर्शाती हैं, जो आगंतुकों को आकर्षित करती हैं।

देवी मंदिर नियाजीपुर

देवी मंदिर नियाजीपुर का निर्माण 1961 में हुआ और इसका उद्घाटन फरवरी 1961 में एक भव्य यज्ञ के साथ किया गया। यह मंदिर नियाजीपुर के मूल निवासी स्वर्गीय राम उग्रह सिंह द्वारा स्थापित किया गया था, जो इस क्षेत्र के एक प्रमुख व्यक्ति थे। उनके द्वारा स्थापित इस मंदिर का उद्देश्य स्थानीय लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना था।

यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है, जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाता है। तालाब का शांत जल और मंदिर का आकर्षण श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक अनोखा अनुभव प्रस्तुत करता है। मंदिर परिसर में सफाई और हरियाली के कारण यहां का वातावरण अत्यंत मनमोहक है, जो भक्तों को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है।

मंदिर की देखभाल वर्तमान में एक ट्रस्ट के माध्यम से की जाती है, जिसके ट्रस्टी राम उग्रह सिंह के सबसे छोटे पुत्र श्री राज नंदन सिंह हैं। वे मंदिर के विकास और संचालन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं, और मंदिर को धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाए रखने के लिए कई प्रयास करते हैं। यहाँ समय-समय पर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम और यज्ञ आयोजित किए जाते हैं, जो भक्तों को एकत्रित करने और समुदाय के बीच एकता बढ़ाने का काम करते हैं।

इस प्रकार, देवी मंदिर नियाजीपुर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह समाज के लिए एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र भी है, जो लोगों को जोड़ने और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बाबा जमुनेश्वर धाम

बाबा जमुनेश्वर धाम गया शहर के निकट, SH 79 पर स्थित है, जो पवित्र जमूने नदी के तट पर बना है। यह प्राचीन शिव मंदिर टेकारी नरेश गोपाल सरण द्वारा बनवाया गया था। स्थानीय मान्यता है कि बाबा जमुनेश्वर की महिमा अपार है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

महाशिवरात्रि और श्रवण के समय यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। पास में बन रहा सूर्य मंदिर भी भक्तों का आकर्षण है। छठ पूजा के दौरान, यहाँ परिवार के साथ आना एक विशेष अनुभव होता है, जो अपनापन का एहसास कराता है। बाबा जमुनेश्वर धाम धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रमुख केन्द्र है।

सूर्य मंदिर कुजापी

सूर्य मंदिर कुजापी गया शहर से लगभग 3 किमी पश्चिम की ओर कुजापी गांव में स्थित एक विशाल और सुंदर मंदिर है। इसका निर्माण 2012 में पूरा हुआ और 2013 में एक भव्य महायज्ञ के साथ इसका उद्घाटन हुआ, जिसमें लगभग 4000 श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस मंदिर का निर्माण कुजापी के तत्कालीन मुखिया श्री अभय कुशवाहा द्वारा कराया गया, जो टिकारी विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं।

मंदिर के सामने एक कृष्ण मंदिर भी है, जो इस स्थान की धार्मिक महत्ता को बढ़ाता है। इसके साथ ही, मंदिर परिसर में मुंद्रा सरोवर का निर्माण भी किया गया है, जहाँ हर वर्ष छठ पूजा के अवसर पर श्रद्धालु अर्ध देते हैं। यह मंदिर क्षेत्रीय धार्मिकता और आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।

ऐतिहासिक गांव ढीबर

गया-रजौली रोड पर स्थित ऐतिहासिक गांव ढीबर, गया से लगभग 20 किमी दूर है। यह गांव अपने गढ़ के लिए प्रसिद्ध है, जहां भगवान बुद्ध की अनेक प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जो हजारों साल पुरानी हैं, हालांकि ये मूर्तियाँ खंडित हो चुकी हैं। ढीबर में एक पुराना देवी मंदिर भी है, जिसका निर्माण कब और किसने किया, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिससे इसकी ऐतिहासिकता और भी बढ़ जाती है।

इसके अतिरिक्त, यहां बांसी नाला हॉल्ट नाम का एक रेलवे स्टेशन भी है, जो यात्रियों के लिए यात्रा को आसान और तेज़ बनाता है। यह गांव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इतिहास प्रेमियों के लिए भी एक आकर्षक स्थल है।

सूर्य मंदिर (पाई बिगहा)

पाईबिगहा, जो मखदुमपुर से 6 किमी दूर स्थित है, मोरहर नदी के किनारे बसा हुआ है और यह टिकारी राज्य का प्रमुख बाजार रहा है। यहां, प्रसिद्ध इतिहासकार हैमिल्टन बुचनन को ई. पू. प्रथम सदी के प्राचीन शिव मंदिर के जीर्ण अवशेष मिले थे। बाजार के बीचोबीच उसी स्थान पर नया महादेव स्थान स्थापित किया गया है।

पाईबिगहा मंझार रोड पर स्थित एक प्राचीन सूर्य मंदिर है, जो जन आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है। हर वर्ष छठ पूजा के दौरान, मंदिर प्रांगण में बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और छठ पर्व मनाते हैं। इस मंदिर की एक प्रमुख भक्त माई जी के बारे में कहा जाता है कि उन्हें इसी मंदिर प्रांगण में नारायण रूप में सूर्य देव का दर्शन प्राप्त हुआ था, जो इसे और भी विशेष बनाता है।

संत कारुदास मंदिर (कोरमत्थू)

कोरमत्थू, गया के पास स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जिसे “गया के राह कोरमत्थू” के नाम से भी जाना जाता है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान राम ने गया जाते समय जमुने के किनारे विश्राम किया था और एक शिवलिंग स्थापित किया था। इस शिवलिंग की खोज में सिद्ध संप्रदाय के बाबा कारुदास हिमालय छोड़कर कोरमत्थू के चैत्यवन पहुँचे थे।

यहाँ पर प्राचीन शिवलिंग के साथ-साथ ठाकुरबाड़ी और कारूदास जी का मंदिर भी स्थित है। गया से त्रिवेणी अखाड़ा तक सीधी बस सेवा उपलब्ध है, जिससे श्रद्धालुओं के लिए यहाँ पहुँचना आसान हो जाता है। इसके अतिरिक्त, यहाँ से मंझार होते हुए बाबा कोटेश्वर नाथ धाम तक भी आसानी से पहुँचा जा सकता है, जिससे यह स्थान धार्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

माँ तारा मंदिर, केसपा

प्राचीन इतिहास में मगध क्षेत्र में प्रमुख रूप से दो महत्वपूर्ण स्थल थे: चैत्य वन और सिद्ध वन। चैत्य वन में मोरहर और पुनपुन का क्षेत्र केसपा कहा जाता था। माँ तारा के मंदिर के समीप पुनपुन नदी का प्रवाह पूर्व में होता था, जबकि मंझार के पूर्व से मोरहर का प्रवाह होता था। इस प्रकार, मंझार से लेकर केसपा तक का संपूर्ण क्षेत्र केसपा के नाम से जाना जाता था।

इस चैत्य वन के काश्यलपा क्षेत्र में, मेन मंझार का क्षेत्र मंदार वन के नाम से जाना जाता था, जहाँ कुचियानाथ का मठ स्थित था। कुचिया नाथ से भी पहले गया कश्यप नाम के बौद्ध संत का मठ, जिसे माँ तारा पीठ के रूप में जाना जाता है, वहाँ था। बुचनन ने इसे बौद्ध और हिंदू दोनों संप्रदायों का प्रमुख स्थान माना है।

गया जिला मुख्यालय से लगभग 38 किमी और टिकारी से 13 किमी उत्तर में स्थित केसपा गाँव में प्रसिद्ध माँ तारा देवी का मंदिर स्थित है। यहाँ पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तजन वर्षभर आते हैं। विशेष रूप से, आश्विन माह में शारदीय नवरात्रि के दौरान माँ तारा देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जब भक्तों की संख्या में काफी वृद्धि होती है और मंदिर भक्ति से गूंज उठता है।

दुर्लभ पीपल वृक्ष (मेन-मंझार)

कोटेश्वरनाथ मंदिर से 300 मीटर उत्तर में एक दुर्लभ प्रजाति का पीपल वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष विशेष रूप से वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो दूर-दूर से इस पर शोध करने आते हैं। श्रद्धालुओं के लिए यह वृक्ष कौतुक का विषय है, क्योंकि इसकी सभी शाखाएँ दक्षिण की ओर ऊपर से नीचे आकर जमीन को छूती हैं, जैसे कि वे भगवान शिव को प्रणाम कर रही हों, फिर ऊपर उठ जाती हैं।

बोधगया

बोधगया बौद्ध धर्म की राजधानी है। यहाँ वह बोधिवृक्ष स्थित है, जिसके नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, और यह बौद्ध आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

माँ काली मंदिर (बेलागंज)

गुप्तकालीन काली मंदिर मगध क्षेत्र में शाक्त परंपरा का प्रमुख धरोहर है, जो अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।

प्राचीन विष्णु मंदिर (घेजन)

पाई बिगहा से 2 किमी पश्चिम घेजन, प्रमुख पुरातात्विक रुचि का केंद्र है। यहाँ से प्राप्त भगवान बुद्ध की 250 ई पू की मूर्तियाँ और भगवान विष्णु की प्रतिमा पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं। यह मंदिर अति प्राचीन है, और बेलगार ने इसे गुप्त कालीन बताया है।

कोचेश्वरनाथ

कोचेश्वरनाथ मठ एक अति प्राचीन शैव आस्था का केंद्र है, जहाँ भक्तजन भगवान शिव की आराधना करते हैं।

खेतेश्वर महादेव (मेन)

मेन मंझार शैव परंपरा का जागृत स्थान है, जहाँ प्रतिवर्ष एक या एक से अधिक शिवलिंग स्वयं प्रकट होते हैं। इस क्षेत्र में कुल 127 शिवलिंग हैं, जिनमें 11 प्रमुख हैं, जिनमें कोटेश्वरनाथ, खेतेश्वर महादेव, और गौरी शंकर शामिल हैं। खेतेश्वर महादेव मोरहर नदी के उफान और बाढ़ में भी नहीं डूबता, जबकि आस-पास के सभी ऊँचे टीले डूब जाते हैं।

अक्षय वट

प्रसिद्ध अक्षय वट विष्णु पाद मंदिर के पास स्थित है। इसे सीता देवी द्वारा अमर होने का वरदान दिया गया था, और इसके पत्ते किसी भी मौसम में नहीं गिरते हैं।

रामशिला पहाड़ी

गया के दक्षिण-पूर्व में स्थित रामशिला पहाड़ी को सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। माना जाता है कि भगवान राम ने यहाँ ‘पिंडा’ की पेशकश की थी। पहाड़ी पर स्थित रामेश्वरा या पातालेश्वर मंदिर मूल रूप से 1014 A.D. में बनाया गया था।

प्रेतशिला पहाड़ी

रामशिला पहाड़ी से लगभग 10 किलोमीटर दूर, प्रेतशिला पहाड़ी पर इंदौर की रानी अहिल्या बाई द्वारा 1787 में निर्मित एक मंदिर स्थित है। यह स्थान पिंड दान के लिए हिंदुओं द्वारा सम्मानित किया जाता है, और यहाँ पूजा करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सीताकुंड

सीता कुंड फल्गु नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है, जहाँ माता सीता ने अपने ससुर का पिंडदान किया था। यह स्थान रामायण काल से जुड़ा है और भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।

डूंगेश्वरी मंदिर / डुंगेश्वरी हिल

यह स्थान गौतम सिद्धार्थ द्वारा बोधगया जाने से पहले की ध्यान साधना का स्थल माना जाता है। यहाँ दो छोटे मंदिर हैं, जहाँ स्वर्ण मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।

थाई मठ, बोधगया

थाई मोनास्ट्री बोधगया का सबसे पुराना विदेशी मठ है, जो सजावटी थाई स्थापत्य शैली में निर्मित है। यहाँ बुद्ध के जीवन को दर्शाते भित्ति चित्र और शानदार मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।

इन सभी स्थलों का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं।

हवाई मार्ग

बिहार और झारखंड का एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा गया विमानक्षेत्र है। यह हवाईअड्डा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों उड़ानों के लिए कार्यरत है। इसके अलावा, झारखंड के देवघर में भी एक नया हवाईअड्डा विकसित किया गया है, जो क्षेत्र के परिवहन के लिए एक महत्वपूर्ण जोड़ है।

रेल मार्ग

गया जंक्शन बिहार का दूसरा सबसे बड़ा रेलस्टेशन है, जो एक विशाल परिसर में स्थित है और यहाँ 9 प्लेटफार्म हैं। गया से विभिन्न प्रमुख शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • पटना
  • रांची
  • धनबाद
  • कोलकाता
  • पुरी
  • बनारस
  • चेन्नई
  • मुंबई
  • नई दिल्ली
  • नागपुर
  • गुवाहाटी
  • जयपुर
  • अजमेर शरीफ
  • हरिद्वार
  • ऋषिकेश
  • जम्मू-तवी

सड़क मार्ग

गया के सड़क मार्ग नेटवर्क को भी अच्छी तरह से विकसित किया गया है। यहाँ से पटना, राजगीर, रांची, धनबाद, और बनारस जैसे शहरों के लिए नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। गया में दो मुख्य बस स्टैंड हैं, जो फल्गु नदी के तट पर स्थित हैं।

  • गांधी मैदान बस स्टैंड नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है और यहाँ से बोधगया के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं।

इन सभी परिवहन सुविधाओं के माध्यम से गया और उसके आसपास के क्षेत्रों में यात्रा करना सुविधाजनक है, जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों के लिए सुलभता प्रदान करता है।

Recipe of Gaya

तिलकुट

बिहार का एक ऐतिहासिक शहर, अपनी खास मिठाई तिलकुट के लिए प्रसिद्ध है, जो विशेषकर मकर संक्रांति और छठ पूजा जैसे त्योहारों पर बनाई जाती है। तिलकुट मुख्यतः तिल (तिल के बीज) और गुड़ से बनती है, जिसे भूनकर गुड़ के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। इसका कुरकुरा और मीठा स्वाद इसे स्थानीय निवासियों के बीच बेहद प्रिय बनाता है। तिलकुट न केवल एक स्वादिष्ट मिठाई है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि तिल में प्रोटीन और फाइबर भरपूर होते हैं। यह मिठाई केवल खाने की चीज नहीं, बल्कि गया की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है, जो त्योहारों और समारोहों के दौरान लोगों को एक साथ लाने का कार्य करती है। अगर आप कभी गया जाएँ, तो तिलकुट का स्वाद लेना न भूलें, क्योंकि यह आपको यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव कराएगा।

अनरसा

अनरसा बिहार के गया जिले में बहुत प्रसिद्ध मिठाई है। यह विशेष रूप से दीपावली और अन्य त्योहारों के दौरान बनाई जाती है। अनरसा का स्वाद और इसकी कुरकुरा बनावट स्थानीय लोगों के बीच इसे बेहद लोकप्रिय बनाती है। गया जिले में अनरसा का विशेष महत्व है, और यह यहां के सांस्कृतिक और पारंपरिक खान पान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग इस मिठाई को न केवल खुद खाते हैं, बल्कि इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ भी बांटते हैं, जिससे इसकी प्रसिद्धि और बढ़ जाती है।

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