मानवी मधु कश्यप ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। वे बिहार की पहली ट्रांस वुमन सब इंस्पेक्टर हैं, और उनके साथ दो अन्य ट्रांस मर्द भी इस पद पर नियुक्त हुए हैं। बिहार सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सब इंस्पेक्टर पदों पर आरक्षण का प्रावधान किया है, जिसके तहत प्रति 500 पदों पर एक पद ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिए आरक्षित है। मधु ने इस आरक्षण का लाभ उठाते हुए यह असाधारण सफलता हासिल की है।
संघर्ष की कहानी
करीब 10 साल पहले, मधु ने अपनी मां के सामने अपनी पहचान का राज खोला। उन्होंने अपने दिल में इस राज को दफन कर रखा था और काफी समय तक मानसिक तनाव में जी रही थीं। उन्हें लगा कि जब वह यह राज अपनी मां को बताएंगी, तो शायद उनका मन का बोझ हल्का हो जाएगा। लेकिन, उनके परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा कि वे पहले जैसी ही जीवन जीती रहें। मधु ने कहा, “जब मैंने परिवार को बताया कि मैं ट्रांस वुमन हूं, तो उन्होंने कहा कि अभी जिस तरह रह रही हो, उसी तरह रहो।”
परिवार से दूरी और आत्मनिर्भरता
इस बात से तंग आकर, मधु ने अपने परिवार को छोड़ने का निर्णय लिया। वह अपने शरीर में नहीं रहना चाहती थीं, जो उनके मन के प्रतिकूल था। उन्होंने अपनी पहचान को छुपाकर पढ़ाई की और अंततः परिवार को छोड़कर एक नई शुरुआत करने का फैसला किया। वह बताती हैं, “अगर मैं परिवार के साथ रहती, तो जैसा मैं जीना चाहती थी, वैसा नहीं जी पाती। रोज मारपीट होती घर में।”
पढ़ाई का महत्व
मधु ने यह महसूस किया कि समाज में अपने हक की मांग करने के लिए शिक्षा आवश्यक है। ट्रांस समुदाय के लिए मुख्यधारा के समाज में पढ़ाई प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि अक्सर समाज उनका मजाक उड़ाता है। लेकिन, मधु ने पढ़ाई को अपने लिए एक औजार माना। उन्होंने कहा, “जहां समाज हम जैसे लोगों को कोई मदद नहीं देता है, वहां पढ़ाई ही वो हथियार है, जिसके जरिए आप अपना हक मांग सकते हैं।”
नई पहचान की ओर कदम
पढ़ाई पूरी करने के बाद, मधु ने सोचा कि उन्हें अपनी असली पहचान उजागर करनी होगी। 2014 में, उन्होंने अपनी मां को अपनी पहचान बताई, लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। घर छोड़ने के बाद, मधु ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल में अपनी बहन के साथ कुछ समय बिताया, फिर बंगलुरू चली गईं। बंगलुरू में रहने के दौरान, उन्हें पटना में थर्ड जेंडर समुदाय के लिए एक सरकारी होम के बारे में पता चला और वे पटना लौट आईं।
गुरु रहमान का सहारा
मधु ने दारोगा बनने का सपना नहीं देखा था, लेकिन उन्होंने तय किया कि वह एक ऐसा पद हासिल करेंगी, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति लोगों की मानसिकता बदलेगी। वर्ष 2021 में, उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए तैयारी शुरू की, लेकिन कई जगहों से अस्वीकार कर दी गईं। अंततः, उन्हें गुरु रहमान की कोचिंग में दाखिला मिला, जिन्होंने बिना किसी संकोच के उन्हें स्वीकार किया।
गुरु रहमान का मानना है कि ट्रांसजेंडर लोगों के लिए आरक्षण एक अच्छी शुरुआत है और वह इसे अन्य सरकारी सेवाओं में भी लागू करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “मेरी कोचिंग में पहले से ही ट्रांसजेंडर लोग पढ़ रहे हैं। मैंने मानवी से पूछा कि वह क्या बनना चाहती है, तो वह बोली दारोगा। मैंने उसके माथे पर अंगुली से एसआई लिख दिया।”
भविष्य की ओर
मानवी मधु कश्यप ने न केवल अपनी पहचान को स्वीकार किया है, बल्कि वह अपनी पहचान के साथ जीने में गर्व महसूस करती हैं। अब, वे बहुत जल्द पटना जिले के किसी थाने में दारोगा की वर्दी में नजर आएंगी। उन्होंने अपनी परिकथा जैसी कहानी को समेटते हुए कहा, “पहले मेरी मां को इस बात का दुख था कि उन्होंने एक ट्रांसजेंडर को जन्म दिया है, लेकिन अब वह कहती हैं कि वह हर बार मेरी मां के रूप में जन्म लेना चाहती हैं।”
निष्कर्ष
मानवी मधु कश्यप की कहानी न केवल उनकी व्यक्तिगत लड़ाई का प्रतीक है, बल्कि यह उन सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए प्रेरणा भी है जो समानता और पहचान की तलाश में हैं। उनके संघर्ष और सफलता ने समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति जागरूकता बढ़ाई है, और यह दर्शाता है कि कठिनाइयों के बावजूद, आत्मविश्वास और शिक्षा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है।