औरंगाबाद जिला मुख्यालय से अठारह (18) किलोमीटर की दूरी पर देव सूर्यधाम मंदिर अवस्थित है। पुरातात्विक द़ष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मंदिर का शिखर 100 फीट उचॉ है। इसका निर्माण चौकोर अलंक़त पाषाण खण्डो को लौह कलैम्प से जोड कर किया गया है।
सूर्य मंदिर है स्थापत्य कला का उत्क़ष्ट उदाहरण
देव का सूर्य मंदिर स्थापत्य कला का उत्क़ष्ट उदाहरण हैा एक सांचे में ढले और कला की आत्मा से तरासे गये पत्थरों का यह मंदिर अद्वितीय हैा पत्थरों की सजी हुई शिलाऍ सुन्दर नक्काशी और अनुपम कलाक़ति मन को बरबस आक़ष्ट कर लेती हैंा इसका स्वर्ण कलश दूर से हीं अपनी ओर मन को आकर्षित करता हैा
पश्चिमाभिमुख यह मंदिर नागर शैली के मंदिर स्थापत्य शिल्प एवं पाषाण शिल्प का अद्रभुत नमूना है। मुख्य गर्भग़ह के सामने एकाश्म स्तम्भो के सहारे एक प्रार्थना मण्डप बना है। यदपि ये स्तम्भ अलंक़त नहीं है तथापि इनका शीर्ष एवं आधार सुडौल एवं नैनाभिराम है। मण्डप की छत के मध्य में सतदल कमल है। गर्भग़ह में त्रिकाल सूर्य भगवान के स्परूप हीं तीनों मूर्ति ब्रहमा महेश्वर एवं विष्णु के रूप में स्थापित है। इनके अतिरिक्त मंदिर के बाहर एक विखंडित सूर्यमूर्ति लगभग पॉच फिट मंदिर के अन्दर प्रवेश द्वार के बॉयी ओर उतर के तरफ गणेश भगवान की मूर्ति उसके आगे उमा महेश्वर एवं अन्य कई मूर्तियॉ है। ये मूर्तियॉ काले पत्थर की बनी पालकालीन मूर्ति कला का उत्क़ष्ट नमूना है।
मंदिर निर्माण का कारण
पौराणीक आख्यानों एवं किवदंतियो के अनुसार यह सूर्य कुण्ड मंदिर से प्राचीन एवं मंदिर निर्माण का कारण भी है। राजा जो कुष्ट रोग से ग्रस्त थे शिकार के दौरान सूर्य कुण्ड के जल के स्पर्श मात्र से उनकी ब्याधी दुर हुई और उन्होने यहॉ सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया।
राजा ऐल के संबंध में प्रचलित कहानी निम्न प्रकार की हैा प्रयाग राज के राजाऐल जिन्हें भागवत महापुराण में इला पुत्र् पुरूखा का नाम आया है ये एक समय भ्रमण करते हुए एक जंगल से होकर जा रहे थेा राजा को रास्ते में शौच लगीा शौच जाने वास्ते राजाने अपने अनुसेवक से जल लाने को कहाा अनुसेवक इधर-उधर खोजते हुए एक गढे में जाकरजल पात्र् में जल भरकर लायाा उसी जल से राजा ने शौच कर्म पूरा कियाा राजा ऐल का सम्पूर्ण शरीर में श्वेत कुष्ट थाा शौच क्रिया से निव़त होते समय जल का छींटा उनके शरीर पर जहॉ कहीं भी पडा वहॉ का कुष्ट स्वतः समाप्त हो गया और शरीर सोने की भॉति चमकने लगाा अपने शरीर में आश्चर्य जनक परिवर्तनको देख राजा ने अत्यन्त आनन्दित हो रात में वहीं विश्राम कियाा स्वप्न में भगवानसूर्य ने राजा से कहा कि जिस गढे के जल से तुम्हाराकुष्ट दूर हुआ है उसके भीतर मेरी मूर्ति है उसे निकाल कर मंदिर निर्माण कर उसमें मूर्ति स्थापित करोा इस प्रकार के स्वप्न देखने के बाद जब राजा की निन्द्रा टूटी तब राजा ने सुबह होने पर उस गढे से सूर्य की मूर्ति निकलवाकर मंदिर निर्माण कराकर मूर्ति स्थापना कीा समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्वार होता रहा हैा
पुरातात्विक साक्ष्य एवं मेजर किट्टो के विवरण के अनुसार देव से प्राप्त अभिलेख पर संवत् 1605 (1548 ई0) है। उन्होने यहीं के ब्राहम्णो द्वारा कराये गये अन्य विवरण के अनुसार विक्रम संवत 1293 (1236 ई0) का उल्लेख किया है। मंदिर से पॉच सौ मीटर की दूरी पर सूर्य कुण्ड अवस्थित है।
सूर्य कुण्ड
मंदिर से थोडी दूरी पर सूर्य कुण्ड नामक विशाल तालाब है | कर्तिक एवं चैत्र् के छठ पर्व एवं प्रति रविवार को असंख्य श्रधालु भक्त इस कुण्ड में स्नानकर भगवान सूर्य की पूजा अराधना करते हैं|
प्रतिवर्ष कार्तिक और चैत्र् मास में छठ व्रत का मेला यहॉ लगता हैा सुदूर प्रान्तों के लाखों नर-नारी छठ व्रत कर भ्गवान सूर्य के प्रभाव से अपनी मनोकामनापूर्ण करते हैं|कुण्ड के चारों ओर बने हुए सुन्दर धाट एवं छोटे-छोटे मंदिर तथा धर्मशालाऍ कुण्ड की शोभा बढाते नजर आती हैा
सूर्य कुण्ड का मुख्य आकर्षण
इस स्थान का मुख्य आकर्षण भगवान सूर्य का प्राचीन मंदिर हैा इस मंदिर में ब्रम्हा, विश्णु, महेश की तीन मूर्तियॉ हैंा उदय ब्रहानो रुपं मध्या हे तू महेश्वरः अस्त्माने स्व्यं विष्णु त्रिमुर्ति च दिवकरः भगवान सूर्य का रुप उदय काल में ब्रम्हा का मध्यान्ह में शिव का अस्त के समय विश्णु का है जिसका प्रमाण देव मंदिर में सूर्य की तीन मूर्तियॉ के रुप में हैंा यह शास्त्र सम्मत हैा शिव पुराण के अनुसार वह एक ही महाशक्ति है उसी से यह सारा विश्व आच्छादित है एक एव तदा रुद्रो न द्वितीयों अस्ति कश्चनः अर्थात स़ष्टि के आदि में रूद्र हीं था, किन्तु स़ष्टि के उत्पादन पालन और संहार के गुणों के कारण ब्रम्हा, विष्णु और शिव तीन भेद हुए हैं
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मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया थाा इस संबंध में प्रचलित जनश्रुति निम्नलिखित हैंा कुछ लोगों के मतानुसार भगवान विश्वकर्मा एक ही रात में देव का सूर्य मंदिर, उमगा का रूद्र मंदिर एवं देवकुंड का शिव मंदिर का निर्माण किया थाा देव सूर्य मंदिर में लिखित शिलालेख के अनुसार माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि दिन गुरूवार को इला का पुत्र् ऐल ने त्रेता के 12,16,000 वर्ष बीत जाने के बाद इस सूर्य मंदिर का शिलान्यास कियाा नेता युग 12,96,000 वर्ष का होता है इसमें 12,96,000 वर्ष घटा देने पर 80,000 वर्ष बचताहै, द्वापर में 8,64,000 वर्ष होता हैा वर्तमान कलयुग का 5,097 वर्ष बीत चूकेा इस प्रकार माघ बसंतपंचमी स्म्वत् 2048 को देव सूर्य मंदिर बने 9,46,048 वर्ष हो चूके हैं
अभी 1985 में औरंगाबाद के श्रीगुप्ता जी एवं देव सूर्य मंदिर के सहयोगी बाबा के सहयोग से मंदिरके आंगन का पक्कीकरण किया गया हैा पाताल गंगा देव से पश्चिम दो किलोमीटर दूरी पर पतालगंगा नामक एक सिध तीर्थ स्थान हैा आज से लगभग 115 वर्षपूर्व ज्ञानीनन्द जी नामक एक महात्मा देव सूर्य मंदिर में दर्शन हेतु आये और निकट के बम्हौरी पहाड के पास कुटिया बनाकर रहने लगे उनके आशीर्वाद मात्र् से लोगों का कल्याण होने लगाा बाद में उनके भक्तों ने शिवमंदिर, राधाक़ष्ण मंदिर तथा हनुमान मंदिर बनवा दियेा कुछ लोगोंका कहनाथा कि बाबा आपको गंगा नदी के किनारे रहना चाहिए थाा यह सुनकरबाबा बोले कि यदि तुमलोगों की यही इच्छा है तो गंगा यहीं आवेगी और ऐसा कहकर प़थ्वी में चिमटा धंसाया और पाताल से गंगा का जल निकलने लगाा उसी दिन से इस स्थान का नाम पाताल गंगा पड गयाा उसी स्थान पर तालाब का निर्माण किया गया हैा इस तालाब में स्नान करने से गंगा स्नान का लाभ प्राप्त होता हैा आज भी साधु ब्राम्हण तथा ऋषियों का यहॉ आदर होता हैा ब्रम्हचारी संस्क़त विधालय की स्थापना की गई हैा देव मंदिर में दर्शन करने वाले भक्त गण पाताल गंगा में भी जाकर स्नान एवं दर्शन करते हैंा देव रानी तालाब देव के पश्चिम जहॉ मेला लगता है वहीं रानी तालाब है राजा साहब देव ने अपनी रानी साहिबा के स्म़ति में इस तालाब का निर्माण कराया थाा सुन्दरता में यह सूर्य कुण्ड से कम नहीं हैा रानी साहिबा राजा साहब के साथ यहॉ जल बिहार करती थीा राजा साहब घोडा दौडाते हुये इस तालाब में उतर जाते थे आज इस तालाब का महत्व कम गया है
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देव मेला वर्ष में दो बार चैत्र् एवं कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मेला लगता हैा इस समय लाखों की तादाद में श्रधालु गण दूर-दूर से आकर सूर्य को दण्डवत करते हैंा एवं अर्ध्य देते हैं और इष्ट सिधि प्राप्त करते हैंा श्रधालु गण सूर्य कुण्ड में स्नानकर कर सूर्य मंदिर का सम्पूर्णरास्ते भर दण्डवत प्रणाम करते हैं, क्योंकि भगवान सूर्य प्रणाम से प्रसन्न होते हैंा इस प्रकार दण्डवत करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है एवं पाप से मुक्ति होती हैा वर्तमान समय में छठ पर्व एवं प्रति रविवार को असंख्य श्रधालु भक्तगण देव आकर सूर्य कुण्ड में स्नान के बाद भगवान भास्कर का पूजन करते हैा सूर्य मंदिर के पूजारीगण भी स्वयं स्नान संध्या वंदनपूर्वक रक्त वस्त्र् रक्त चंदन आदि धारण कर वैदिक विधि से भगवान भास्कर की पूजा करते हैं