देख देख के रहिया ,पथरा गेलो अखिया आउ भादों निरमोहिया छिटका मार के चल गेलो।
आसरा लगले रह गेलो कि झमर झमर पनिया बहतो हल। टाल टुकुर पियासले रह गेलय।
बुढ़ पुरनिया कह हखीं।
“भरल भादों टाल डुबावे।
दलिहन तेलहन घर भराबे।।”
अब तो जे हो गेलो से हो गेलो।आसिनो कय दिन बीत गेलो। हथिया नक्षत्र में भी पानी नय पड़लो।कयसे जुआन किसान सब मट्टी से कमैथिन। दिन रात तप कर के किसान फसल उपजाबे ल बेताब रह हखीं। गामे गाम विरान लग हय आदमी बिना। गांव जाके देखहो कयसन धात धात कर हय गल्ली कुच्ची।
जखनी हमनहीं सब छोटे गो हलिय। इहे गलियन में धमकुचड़ी मचल रह हलय। आसिन में बैल के मान बढ़ल रह हलय। किसान सभे बूंट, खेसारी, मसुरी, केराव(मटर), सरसों, तीसी, सूरजमुखी लेके टाल के खेत में लगाव हलखीं। टाल के खेत सब नौ महीना के विरानी के बाद आबाद होवे लग हय आसिन में। धरती माय के कोख में अंकुरे लग हय जिनगी। रात के सीतल बियार आउ दिन में घामा सबकोय के बेचैन करले रह हय।
पहिले पीतरपछ फिनु दसयं ।अमसिया के राते में दादी, माय, फुआ, चाची सभे करिया कपड़ा में कच्चा-पक्का बालू, बैर कें कांटा,बबूल के कांटा, हींग जमायन आउ पता नम केतना चीज मिलाके जंतर (माने छोटे गो पोटली) बना के घर में सबकोय के पेहना देल हलखिन। बिस्वास हलय कि इ जंतर पेन्हावे से सब अलाय बलाय से दूर रहथिन।
जयसे जयसे हमनी सब आधुनिक होल जा हीय। ई सब पर बिस्वास नय होवहय।अब तो बुतरूअन के कजरो नय लगाव हखीं सब। हां ई बात दीगर है कि अब मेकअप जरूर पोतल जा हय। पहिले सबकुछ घरे में बनावल जा हलय,अब सब बजारे पर ओठगल रह हखीं। दु दिन बाद दसयं हेल जयतो सब अप्पन अप्पन खियाल रखिहा।
लिखताहर – लता प्रासर