Thursday, November 21, 2024

श्यामानंद जलान: भारतीय रंगमंच के पुनर्जागरण के अग्रदूत

श्यामानंद जालान का नाम भारतीय रंगमंच के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। वे न केवल एक प्रमुख रंगमंच निर्देशक थे, बल्कि हिंदी और बंगाली रंगमंच के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु भी थे। उनके नेतृत्व में कोलकाता में हिंदी रंगमंच का पुनर्जागरण हुआ और भारतीय नाट्य जगत में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

13 जनवरी 1934 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मे श्यामानंद जालान का पालन-पोषण एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में हुआ। उनकी शिक्षा कोलकाता में हुई, जहां उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई की। हालांकि उनका परिवार व्यवसायिक पृष्ठभूमि से था, लेकिन श्यामानंद ने शुरुआत से ही रंगमंच के प्रति अपनी रुचि को पहचाना और इसे अपनी पहचान बनाने का जरिया बनाया।


रंगमंच की ओर रुझान

1949 में श्यामानंद ने अपना रंगमंचीय सफर नाटक नया समाज के साथ शुरू किया। इसके बाद 1951 में उन्होंने समस्या नाटक में भी अभिनय किया। हालांकि उन्होंने शुरुआत में कानून का अध्ययन किया और कुछ समय तक वकील के रूप में भी काम किया, लेकिन उनका मन पूरी तरह से रंगमंच की ओर झुका रहा। 1955 में उन्होंने अनामिका थिएटर ग्रुप की सह-स्थापना की, जिसके जरिए उन्होंने अपने नाट्य करियर को एक नई दिशा दी।


हिंदी रंगमंच का पुनर्जागरण

श्यामानंद जालान के नेतृत्व में हिंदी रंगमंच ने एक नया मोड़ लिया। 1960 में उन्होंने मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक आषाढ़ का एक दिन का मंचन किया, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। इसके बाद उन्होंने मोहन राकेश के अन्य नाटकों जैसे लहरों के राजहंस और आधे अधूरे का भी सफलतापूर्वक निर्देशन किया। इन नाटकों के जरिए उन्होंने हिंदी रंगमंच में यथार्थवाद और मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को बखूबी उकेरा।


बंगाली और हिंदी रंगमंच के बीच सेतु

श्यामानंद जालान ने न केवल हिंदी रंगमंच को समृद्ध किया, बल्कि बंगाली नाटकों को भी हिंदी में प्रस्तुत करके दोनों भाषाओं के रंगमंच के बीच एक सेतु का निर्माण किया। उन्होंने बादल सरकार के नाटक एवं इंद्रजीत और पागल घोड़ा को हिंदी दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया, जिससे भारतीय रंगमंच में बंगाली और हिंदी के बीच की दूरी कम हो गई। इसके अलावा, उन्होंने मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर के नाटकों का भी निर्देशन किया, जो अपने कठोर यथार्थवाद के लिए प्रसिद्ध थे।


पदातिक थिएटर ग्रुप और नवीन प्रयोग

1972 में श्यामानंद जालान ने पदातिक थिएटर ग्रुप की स्थापना की, जो आज भी भारतीय रंगमंच में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस ग्रुप के जरिए श्यामानंद ने न केवल पारंपरिक नाटकों का मंचन किया, बल्कि नए और बोल्ड नाट्य प्रयोगों को भी प्राथमिकता दी। गिद्ध और हजार चौरासी की माँ जैसे नाटक उनके निर्देशन की उत्कृष्टता के प्रमाण हैं।


फिल्मी करियर

श्यामानंद जालान ने रंगमंच के अलावा फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमाया। 2005 में उन्होंने ईश्वर माइम कंपनी नामक फिल्म का निर्देशन किया, जो माइम कला पर आधारित थी। यह फिल्म विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में प्रदर्शित हुई और समीक्षकों द्वारा सराही गई। हालांकि व्यावसायिक रूप से यह फिल्म व्यापक दर्शकों तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन कला के क्षेत्र में इसे एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।


सम्मान और पुरस्कार

श्यामानंद जालान के योगदान को 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 1999 से 2004 तक संगीत नाटक अकादमी के उपाध्यक्ष भी रहे। उनके निर्देशन और योगदान ने उन्हें भारतीय रंगमंच के एक अद्वितीय स्थान पर स्थापित किया। उनकी पत्नी, चेतना जालान, भी एक प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना और रंगमंच अभिनेत्री थीं। दोनों ने मिलकर रंगमंच और शास्त्रीय नृत्य को समृद्ध करने का कार्य किया।


निधन और विरासत

24 मई 2010 को लंबी बीमारी के बाद श्यामानंद जालान का कोलकाता में निधन हो गया। उनके जाने के बाद भी उनकी कला और योगदान को याद किया जाता है। उनके नाम पर स्थापित श्यामानंद जालान राष्ट्रीय युवा रंगमंच पुरस्कार के जरिए उनकी विरासत को जीवित रखा जा रहा है। यह पुरस्कार युवा नाटककारों को सम्मानित करता है और भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा प्रदान करता है।


श्यामानंद जालान का जीवन और उनका कार्य आज भी रंगमंच प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी नाट्य दृष्टि, उनकी कला के प्रति प्रतिबद्धता, और हिंदी रंगमंच के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें भारतीय रंगमंच का एक स्तंभ बना दिया।

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