Friday, September 20, 2024
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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद: स्वतंत्रता के संरक्षक और भारत के प्रथम राष्ट्रपति

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प्रारंभिक जीवन

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सारण जिले (अब सीवान) के जीरादेई गांव में हुआ। उनके पिता महादेव सहाय संस्कृत और फारसी के विद्वान थे, जबकि उनकी माता कमलेश्वरी देवी धर्मपरायण महिला थीं। उनका परिवार उत्तर प्रदेश के कुआँगाँव से बिहार आकर बसा था, और उनके दादा ने हथुआ रियासत में दीवानी का काम किया। राजेंद्र प्रसाद अपने परिवार में सबसे छोटे थे और अपने चाचा जगदेव सहाय के लाड़ले थे, जिनके कोई संतान नहीं थी।

शिक्षा और विवाह

राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा फारसी में हुई और बाद में उन्होंने छपरा जिला स्कूल में पढ़ाई की। मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजवंशी देवी से हुआ। इसके बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और कोलकाता विश्वविद्यालय से 18 वर्ष की उम्र में प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से स्नातक और 1915 में कानून में स्नातकोत्तर (एलएलएम) की परीक्षा स्वर्ण पदक के साथ उत्तीर्ण की।

भाषाई और साहित्यिक रुचि

हालांकि उनकी प्रारंभिक शिक्षा फारसी और उर्दू में हुई, लेकिन उन्होंने बी.ए. में हिंदी को चुना। राजेंद्र बाबू अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, फारसी और बंगाली में निपुण थे। उन्हें गुजराती का भी व्यावहारिक ज्ञान था। वे हिंदी के प्रति अत्यधिक प्रेम रखते थे और हिंदी साहित्य सम्मेलन के विभिन्न अधिवेशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदी में आत्मकथा और अंग्रेजी में भी कई पुस्तकों का लेखन किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

राजेंद्र प्रसाद का स्वतंत्रता आंदोलन में पदार्पण महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ। 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी के साथ जुड़े और उनके समर्पण से प्रेरित होकर, 1928 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद का दायित्व 1934 और 1939 में निभाया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और 1934 में बिहार भूकंप के दौरान और 1947 में विभाजन के समय राहत कार्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति

स्वतंत्रता के बाद, राजेंद्र प्रसाद को 26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और अपने कर्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा से किया। 1962 में उन्होंने राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण किया, जिसके बाद उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

निधन

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाक़त आश्रम में हुआ। उनकी वंशावली को उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद, एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, ने आगे बढ़ाया। राजेंद्र बाबू की सरलता, त्याग और निष्ठा हमेशा राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगी।

डॉ. प्रसाद ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें शामिल हैं:

  • आत्मकथा (1946)
  • बापू के कदमों में (1954)
  • इंडिया डिवाइडेड (1946)
  • सत्याग्रह ऐट चंपारण (1922)

भारत रत्न और विरासत

1962 में, उन्हें राष्ट्र की ओर से भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके महान योगदान के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक था। उनका जीवन भारतीय मूल्यों और परंपराओं का आदर्श था, जो सदैव प्रेरणा देते रहेंगे।

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