Thursday, November 21, 2024

डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा: बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री

डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का जीवन सादगी, समर्पण और सेवा का प्रतीक था। वे न केवल एक अद्वितीय स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि बिहार के प्रशासनिक ढांचे को तैयार करने वाले प्रमुख नेता भी थे। उनके जीवन और कार्यों को इस प्रकार संक्षेप में वर्णित किया जा सकता है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का जन्म 18 जून 1887 को बिहार के औरंगाबाद जिले के पोईअवा गांव में हुआ। वे एक साधारण भूमिहार परिवार से थे, लेकिन उनके पिता, ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह, अपने समय के प्रतिष्ठित और वीर व्यक्ति माने जाते थे। अनुग्रह बाबू की प्रारंभिक शिक्षा औरंगाबाद मिडिल स्कूल और गया जिला स्कूल में हुई, जिसके बाद उन्होंने पटना कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इस दौरान ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विचारों से प्रेरित होकर भारत माता की सेवा का व्रत लिया। उनका नेतृत्व कौशल और संगठनात्मक प्रतिभा छात्र जीवन में ही प्रकट हो गई थी, जब उन्होंने ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

डॉ. अनुग्रह बाबू का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतुलनीय रहा। वे महात्मा गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सहयोगी बने और चंपारण सत्याग्रह में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें एक मजबूत स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया। उन्होंने नील आंदोलन में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और अंग्रेजों के खिलाफ बिना किसी भय के खड़े रहे। उनके नेतृत्व में चंपारण का किसान आंदोलन सफल हुआ और इसने उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका दिलाई।

वे नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे। गांधीजी के “करो या मरो” नारे का समर्थन करते हुए उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया और कई बार जेल भी गए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनका साहस, सेवा और निष्ठा प्रेरणादायक थी, जिसके कारण वे गांधीजी के प्रिय अनुयायियों में से एक थे।

प्रशासनिक योगदान और सादगी

स्वतंत्रता के बाद, 1946 में, डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बने। उन्होंने बिहार के विकास के लिए कृषि, उद्योग, और श्रमिकों के कल्याण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए। उनके प्रयासों से कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ, और श्रमिकों के लिए नए कानून बनाए गए। श्रम मंत्री के रूप में उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने और उन्हें न्याय दिलाने के लिए कई नीतियां बनाईं, जो आज भी देश में मापदंड मानी जाती हैं।

बाबू साहब की सादगी उनके चरित्र की सबसे प्रमुख विशेषता थी। वे बिना किसी विशेष सुरक्षा या काफिले के, अपनी व्यक्तिगत गाड़ी से यात्रा करते थे। सरकारी पद पर होते हुए भी उन्होंने कभी अपने व्यक्तिगत खर्चे के लिए सरकारी धन का उपयोग नहीं किया। यहां तक कि सरकारी यात्राओं में भी वे अपने भोजन का खर्च स्वयं वहन करते थे। उनकी सरलता और परोपकारी स्वभाव ने उन्हें जनता के बीच अत्यंत प्रिय बना दिया।

मृत्यु और विरासत

5 जुलाई 1957 को डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का निधन पटना में हुआ। उनके निधन पर बिहार में सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया। उनके अंतिम संस्कार में विशाल जनसमूह शामिल हुआ, जो उनके प्रति लोगों के गहरे प्रेम और आदर को दर्शाता है।

डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह को बिहार की जनता “बिहार विभूति” के नाम से सम्मानित करती है। वे आधुनिक बिहार के निर्माता थे, जिनके बिना बिहार का विकास अधूरा होता। उनका जीवन सादगी, निष्ठा और जनता की सेवा के लिए समर्पित था। उनका योगदान, न केवल स्वतंत्रता संग्राम में, बल्कि बिहार के विकास में भी अमूल्य था। उनके आदर्श और कार्य आज भी बिहार के नेताओं और समाज के लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं।

Facebook Comments

इसे भी पढ़े

इसे भी पढ़े

बिहारी खानपान

बिहारी खानपान

इसे भी पढ़े