डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, जिन्हें लोग प्यार से “श्री बाबू” कहते थे, बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे। उनका जन्म 21 अक्टूबर 1887 को बिहार के मुंगेर जिले के मौर गांव में हुआ था। श्री बाबू न केवल बिहार की राजनीति में एक महान व्यक्तित्व थे, बल्कि वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी भी थे। उन्हें “बिहार केसरी” के रूप में जाना जाता था, जो उनके साहस और जनसेवा की महानता का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
श्रीकृष्ण सिंह का जन्म एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब वे केवल पांच वर्ष के थे, उनकी माँ की मृत्यु प्लेग से हो गई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल और मुंगेर के जिला स्कूल में हुई। 1906 में, उन्होंने पटना कॉलेज में दाखिला लिया, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था। बाद में, उन्होंने कानून की डिग्री पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की और 1915 में मुंगेर में वकालत शुरू की। यहीं से उनके जीवन में बड़े बदलाव आए और वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
श्री बाबू की महात्मा गांधी से पहली मुलाकात 1916 में हुई थी और गांधीजी से प्रेरित होकर, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। 1921 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी वकालत छोड़ दी। इसके बाद वे कई बार ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए और जेल में बंद रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने कुल आठ वर्ष जेल में बिताए।
वे बिहार में नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रहे। 1940 में, महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार का “पहला सत्याग्रही” घोषित किया।
मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल
श्रीकृष्ण सिंह ने 20 जुलाई 1937 को बिहार के पहले मुख्यमंत्री (तब प्रीमियर) का पद संभाला। उनका कार्यकाल बहुत ही महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि उन्होंने आधुनिक बिहार की नींव रखी। उन्होंने ज़मींदारी प्रथा को खत्म कर किसानों को जमीन का अधिकार दिलाया। यह देश के किसी भी राज्य में पहली बार था कि ज़मींदारी प्रथा को कानूनी रूप से समाप्त किया गया। उनके इस क्रांतिकारी कदम से बिहार के किसानों को बड़ी राहत मिली।
उन्होंने औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए। उनके कार्यकाल में बिहार में कई भारी उद्योग स्थापित किए गए, जिनमें बरौनी रिफाइनरी, रांची में हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन और बोकारो स्टील प्लांट प्रमुख थे। इसके अलावा, उन्होंने गंगा नदी पर राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया, जो स्वतंत्र भारत का पहला रेल पुल था।
सामाजिक सुधार और दलित उत्थान
श्री बाबू का जीवन सामाजिक सुधारों से भी भरा रहा। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने बैद्यनाथ धाम मंदिर में दलितों के प्रवेश का नेतृत्व किया, जो उस समय एक साहसिक कदम था। इसके साथ ही, वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे और सभी जातियों और वर्गों को समान मानते थे।
सांस्कृतिक और शैक्षिक योगदान
श्रीकृष्ण सिंह ने बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बिहार के कई प्रमुख शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की, जिनमें नेतरहाट स्कूल, पटना विश्वविद्यालय और मुजफ्फरपुर का इंजीनियरिंग कॉलेज प्रमुख हैं। वे अपनी विद्वता और ज्ञान के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने 1959 में मुंगेर के सार्वजनिक पुस्तकालय को 17,000 पुस्तकों का अपना निजी संग्रह दान कर दिया, जिसका नाम अब श्री कृष्ण सेवा सदन रखा गया है।
उनके कार्यकाल की विशेषताएँ
श्री बाबू का प्रशासनिक कौशल अतुलनीय था। उन्होंने किसानों के हक में कई नीतियाँ बनाई और बिहार को औद्योगिक और कृषि विकास की दिशा में अग्रसर किया। वे इस बात पर विश्वास करते थे कि उनका कार्य उनके लिए बोलेगा, इसलिए उन्होंने कभी अपने निर्वाचन क्षेत्र में वोट मांगने के लिए प्रचार नहीं किया। उनका मानना था कि विकास और जनकल्याण ही सबसे बड़ा प्रचार है।
अंतिम दिनों का योगदान
श्रीकृष्ण सिंह ने 1946 से लेकर अपनी मृत्यु तक लगातार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 31 जनवरी 1961 को उनका निधन हो गया। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उनके सम्मान में पटना में श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल और मुंगेर में श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई।
विरासत और मान्यता
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के योगदान को आज भी बिहार की राजनीति और समाज में बहुत सम्मान के साथ याद किया जाता है। वे एक सच्चे जननेता थे, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बिहार और भारत की सेवा में अर्पित कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी नीतियाँ और विचारधारा आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने जातिवाद, क्षेत्रवाद और सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया। उनके कार्यों की बदौलत उन्हें “बिहार केसरी” और “आधुनिक बिहार के निर्माता” के रूप में सम्मानित किया जाता है।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण सिंह का जीवन त्याग, समर्पण और संघर्ष की मिसाल है। उनके नेतृत्व ने बिहार को एक नई दिशा दी और उनकी नीतियों से लाखों लोगों को लाभ मिला। वे न केवल एक महान राजनेता थे, बल्कि एक सच्चे देशभक्त और समाज सुधारक भी थे। बिहार और भारत के विकास में उनके योगदान को सदियों तक याद रखा जाएगा।