परिचय
सिलाओ का खाजा, बिहार की नालंदा जिले के एक छोटे से कस्बे ‘सिलाओ’ की एक विशिष्ट मिठाई है, जो अपनी परतदार बनावट और अद्वितीय मिठास के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। खाजा एक पारंपरिक भारतीय मिठाई है, लेकिन सिलाओ का खाजा अपनी खास बनावट और स्वाद के कारण सबसे अलग और लोकप्रिय है। यह मिठाई मुख्य रूप से बिहार के पारंपरिक उत्सवों, शादियों, धार्मिक अनुष्ठानों और मेलों में परोसी जाती है। इसका स्वाद हल्का मीठा और कुरकुरा होता है, जो इसे खाने में बेहद लाजवाब बनाता है।
इतिहास और परंपरा
सिलाओ का खाजा का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। कहा जाता है कि यह मिठाई मगध साम्राज्य के समय से ही यहां प्रचलित है। यह मिठाई बौद्धकालीन स्थलों के पास स्थित सिलाओ गांव में बनाई जाती है, और इसी गांव के नाम पर इसका नाम ‘सिलाओ का खाजा’ पड़ा। सिलाओ का खाजा, राजगीर और नालंदा आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है। यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक इस मिठाई को अवश्य चखते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। इस मिठाई की लोकप्रियता इतनी है कि इसे भारत सरकार द्वारा ‘जीआई टैग’ (Geographical Indication) भी प्राप्त हुआ है, जो इसकी विशिष्टता और सांस्कृतिक धरोहर को प्रमाणित करता है।
बनावट और विशेषता
सिलाओ का खाजा मुख्यतः मैदा, चीनी, और घी से बनाया जाता है, लेकिन इसकी असली विशेषता इसकी परतदार बनावट में है। इसे बनाने की प्रक्रिया में मैदा की कई परतें तैयार की जाती हैं, जो तलने के बाद कुरकुरी हो जाती हैं। खाजा की परतें इतनी पतली होती हैं कि एक बार में 10 से 15 परतें आसानी से नजर आ जाती हैं। इन परतों के बीच घी का लेप लगाया जाता है, जिससे यह और भी अधिक स्वादिष्ट और नर्म हो जाता है। तले हुए खाजा को चीनी की चाशनी में डुबोया जाता है, जिससे इसमें हल्की मिठास भर जाती है।
मुख्य सामग्री
- मैदा (सफेद आटा)
- घी (शुद्ध घी या वनस्पति घी)
- चीनी (चाशनी के लिए)
- पानी (चाशनी बनाने के लिए)
- इलायची (सुगंध और स्वाद के लिए)
तैयारी की विधि
- मैदा की लोई तैयार करें: सबसे पहले मैदा में घी मिलाकर उसे अच्छे से मलकर मुलायम आटा तैयार किया जाता है। इसे कुछ समय के लिए ढककर रखा जाता है, ताकि आटा अच्छे से फूल सके।
- परतें बनाना: तैयार आटे की छोटी-छोटी लोइयां बनाई जाती हैं, जिन्हें बेलकर पतला किया जाता है। इन परतों को घी से चुपड़कर एक के ऊपर एक रखा जाता है और रोल किया जाता है। इसके बाद इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और फिर से बेलकर परतदार खाजा के रूप में तैयार किया जाता है।
- तलने की प्रक्रिया: इन तैयार परतदार खाजा को मध्यम आंच पर घी में तला जाता है। तलने के बाद यह सुनहरे रंग का हो जाता है और उसकी परतें कुरकुरी हो जाती हैं।
- चाशनी में डुबाना: तले हुए खाजा को चीनी की हल्की चाशनी में डुबोया जाता है। चाशनी इतनी गाढ़ी नहीं होती कि मिठाई में अतिरिक्त मिठास भर जाए, बल्कि हल्की मिठास के साथ खाजा को उसकी असली बनावट के साथ कुरकुरा रखा जाता है।
- सजावट और परोसना: खाजा को ठंडा करके परोसा जाता है। कभी-कभी इसे हल्की इलायची पाउडर या सूखे मेवों से सजाया जाता है, ताकि इसका स्वाद और भी बढ़ जाए।
Also read:लिट्टी-चोखा: बिहार की सांस्कृतिक और पारंपरिक व्यंजन
स्वाद और क्षेत्रीय पहचान
सिलाओ का खाजा अपने आप में एक अनोखा व्यंजन है। इसका हल्का मीठा स्वाद और कुरकुरी परतें इसे अन्य मिठाइयों से अलग बनाती हैं। यह मिठाई बिहार के नालंदा और राजगीर क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। देशभर से आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु इस मिठाई को न केवल वहां पर आनंद लेते हैं, बल्कि इसे अपने साथ घर भी ले जाते हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
सिलाओ का खाजा न केवल एक मिठाई है, बल्कि यह बिहार की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह मिठाई विशेष रूप से बिहार के मेलों, धार्मिक यात्राओं और त्योहारों पर बनाई जाती है। नालंदा और राजगीर आने वाले बौद्ध श्रद्धालु इस मिठाई को प्रसाद के रूप में लेते हैं। इसके अलावा, इसे शादियों और अन्य पारिवारिक उत्सवों में भी विशेष रूप से परोसा जाता है।
पोषण मूल्य
सिलाओ का खाजा पोषण से भरपूर मिठाई नहीं है, क्योंकि इसमें मैदा और घी का प्रमुखता से उपयोग होता है। हालांकि, इसे सीमित मात्रा में खाने से यह ऊर्जा प्रदान करता है। इसमें मौजूद घी और चीनी से त्वरित ऊर्जा मिलती है, लेकिन इसे अधिक मात्रा में खाने से परहेज करना चाहिए।
निष्कर्ष
सिलाओ का खाजा बिहार की एक विशेष मिठाई है, जो अपनी अनूठी परतदार बनावट और हल्की मिठास के कारण प्रसिद्ध है। यह न केवल एक मिठाई है, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। इस मिठाई का हर कौर न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि उसमें बिहार की मिट्टी की खुशबू और परंपरा की मिठास भी छिपी होती है।