जन्म
उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमराँव में हुआ। उनका प्रारंभिक जीवन एक संगीत परंपरा में बीता, जहां उनका परिवार शहनाई वादन में प्रसिद्ध था। उनके पिता पैगम्बर ख़ाँ भी दरबारी संगीतकार थे।
प्रारंभिक जीवन
बिस्मिल्ला ख़ाँ का जन्म एक बिहारी मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय उनके पिता शहनाई बजाने की तैयारी कर रहे थे और जब उन्होंने अपने बेटे की किलकारी सुनी, तो उन्होंने उसे “बिस्मिल्लाह” कहकर पुकारा। उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन था, लेकिन वे बिस्मिल्ला के नाम से जाने गए। अपने माता-पिता की दूसरी संतान होने के नाते, बिस्मिल्ला को संगीत की गहरी परंपरा में लाया गया।
छह साल की उम्र में, वे अपने पिता के साथ बनारस चले गए, जहाँ उन्होंने अपने मामा अली बख्श ‘विलायती’ से शहनाई बजाना सीखा।
पारिवारिक जीवन
बिस्मिल्ला ख़ाँ का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम से हुआ, जिससे उन्हें नौ संताने हुईं। उन्होंने हमेशा एक अच्छे पति और पिता की भूमिका निभाई। शहनाई को वे अपनी दूसरी बेगम मानते थे और लगातार 30-35 वर्षों तक 6 घंटे रियाज करते रहे।
सांझी संस्कृति के प्रतीक
यद्यपि वे शिया मुसलमान थे, वे हिंदू रीति-रिवाजों के प्रति सम्मानित थे। वे बाबा विश्वनाथ के मंदिर में जाकर शहनाई बजाते थे और गंगा किनारे घंटों रियाज करते थे। वे जात-पात को नहीं मानते थे; उनके लिए संगीत ही उनका धर्म था। बिस्मिल्ला ख़ाँ वास्तव में साझी संस्कृति के एक शक्तिशाली प्रतीक थे।
पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ
- भारत रत्न – 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित।
- पद्म विभूषण – 1980 में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार।
- पद्म भूषण – 1968 में भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार।
- पद्म श्री – 1961 में चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित।
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार – 1956 में भारत की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य एवं नाटक अकादमी द्वारा।
- तानसेन पुरस्कार – मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए।
- तालार मौसिकी – 1992 में ईरान गणराज्य द्वारा दिया गया पुरस्कार।
मृत्यु
उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ का निधन 21 अगस्त, 2006 को हुआ। उनके निधन के बाद, उन्हें लाखों लोगों द्वारा श्रद्धांजलि दी गई, जिन्होंने उनके संगीत और उनकी देशभक्ति को याद किया।
उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ का जीवन एक अद्भुत संगीत यात्रा है, जिसने न केवल भारतीय संगीत को समृद्ध किया, बल्कि एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी बना।