Thursday, September 19, 2024
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कर्पूरी ठाकुर : जन नायक की प्रेरक कहानी

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कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 – 17 फरवरी 1988) एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, और बिहार के प्रतिष्ठित राजनेता थे। वे बिहार के दूसरे उप-मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि लोग उन्हें ‘जन नायक’ कहते थे। 23 जनवरी 2024 को, भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित करने की घोषणा की।

व्यक्तिगत जीवन

कर्पूरी ठाकुर का जन्म ब्रिटिश भारत में, समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गाँव (अब कर्पूरीग्राम) में हुआ। उनका परिवार नाई (ठाकुर) जाति से था और उनके पिता, श्री गोकुल ठाकुर, सीमांत किसान और पारंपरिक पेशे से नाई थे। उनकी माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में पटना विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और 26 महीने जेल में बिताए। 1945 में रिहा होने के बाद, उन्होंने समाजवादी विचारों को अपनाया और 1948 में आचार्य नरेन्द्रदेव और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल के प्रादेशिक मंत्री बने।

राजनीतिक जीवन

कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक सफर 1967 के चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के प्रमुख नेता के रूप में उभरने के साथ शुरू हुआ। 1970 में वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1977 में पुनः इस पद को संभाला। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने दलित, शोषित, और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कई प्रयास किए। उनके नेतृत्व में पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण दिया गया, जो 1978 में मुंगेरी लाल आयोग के तहत लागू हुआ।

कर्पूरी ठाकुर का जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक था। वे हमेशा गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। उनकी ईमानदारी और समाज सेवा की भावना ने उन्हें बिहार के लोगों का आदर्श बना दिया। मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कभी कोई निजी संपत्ति नहीं बनाई। उनके बेटे रामनाथ ठाकुर के अनुसार, कर्पूरी जी ने अपने परिवार को कभी भी राजनीति में आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।

प्रमुख उपलब्धियाँ और योगदान

  1. शिक्षा में सुधार: कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया, जिससे खासकर लड़कियों के लिए शिक्षा अधिक सुलभ हो गई।
  2. सरकारी नौकरियों में आरक्षण: 1977 में पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया गया, जो उनके सामाजिक न्याय की दिशा में किए गए महत्वपूर्ण कदमों में से एक था।
  3. सादगीपूर्ण जीवन: दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री रहने के बावजूद, उन्होंने कभी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनाई। उनके सरल जीवनशैली और निस्वार्थ सेवा की वजह से वे हमेशा लोगों के दिलों में बसे रहे।

निधन

17 फरवरी 1988 को 64 वर्ष की उम्र में कर्पूरी ठाकुर का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उनके निधन के बाद भी, उनकी विरासत उनके सिद्धांतों और जनता के प्रति उनकी निष्ठा के रूप में जीवित है। उनके विचार और कार्य आज भी समाज में प्रेरणा स्रोत हैं।

कर्पूरी ठाकुर सही मायने में “जननायक” थे, जिन्होंने अपनी सादगी, सेवा और समर्पण से जनता का दिल जीता और समाज में अमिट छाप छोड़ी।

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