Thursday, September 19, 2024
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बीपी मंडल: सामाजिक समानता के लिए संघर्ष का प्रतीक

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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल, जिन्हें बीपी मंडल के नाम से जाना जाता है, का जन्म 25 अगस्त 1918 को बनारस (अब वाराणसी) में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी और वकील रासबिहारी मंडल और सीतावती मंडल की सातवीं संतान थे। मंडल का बचपन बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गांव में बीता, जहाँ उनका परिवार एक संपन्न यादव जमींदार परिवार से ताल्लुक रखता था। यह जमींदारी पृष्ठभूमि और ग्रामीण परिवेश ने उनके प्रारंभिक जीवन को आकार दिया, जिसमें वे सामाजिक असमानताओं और वर्ग भेदभाव से अवगत हुए। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की, जो उनके राजनीतिक और सामाजिक सोच का पहला पड़ाव बना। बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए, जहाँ उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की।

मंडल का बचपन और उनकी प्रारंभिक शिक्षा ने उन्हें समाज की विभिन्न आर्थिक और सामाजिक स्थितियों से परिचित कराया, और यह अनुभव उनके जीवन के भविष्य के कार्यों का आधार बना। वे एक सामान्य छात्र थे, लेकिन उन्होंने अपने आस-पास के सामाजिक ढांचे में बड़े बदलाव लाने का सपना देखा।

प्रारंभिक करियर और राजनीति में प्रवेश

शिक्षा पूरी करने के बाद, बीपी मंडल ने 1945 से 1951 तक मजिस्ट्रेट के रूप में काम किया। उस समय, वे न्यायिक व्यवस्था और समाज के बीच के संबंधों को गहराई से समझने लगे थे। हालांकि, उनकी न्यायपालिका में नौकरी ने उन्हें यह अहसास कराया कि सामाजिक और आर्थिक असमानता के मुद्दों को केवल कानून के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता। 1951 में, उन्होंने मजिस्ट्रेट की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। यह उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत थी, जहाँ से उन्होंने समाज के वंचित वर्गों की आवाज बनने का निर्णय लिया।

कांग्रेस से शुरुआत करने के बाद, बीपी मंडल ने बाद में कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी में अपनी राजनीतिक पारी जारी रखी। 1967 में वे पहली बार बिहार के मधेपुरा से सांसद बने और 1967 से 1970 तथा 1977 से 1979 तक सांसद के रूप में जनता की सेवा की। इस दौरान, उन्होंने राजनीति में समाजवादी विचारधारा और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का काम किया।

मुख्यमंत्री का कार्यकाल

1 फरवरी 1968 को बीपी मंडल ने बिहार के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि वह एक ऐसे समय में मुख्यमंत्री बने थे जब राज्य में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर थी। हालांकि, उनका कार्यकाल केवल 30 दिनों का रहा। 30 दिनों बाद, उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस संक्षिप्त कार्यकाल को विभिन्न राजनीतिक कारणों से जोड़ा जाता है, लेकिन यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिससे उन्हें राज्य की जमीनी हकीकतों का और गहरा अनुभव हुआ।

मंडल आयोग और सामाजिक न्याय

बीपी मंडल का सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक योगदान 1978 में आया, जब जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान उन्हें “मंडल आयोग” का अध्यक्ष बनाया गया। यह आयोग आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों (OBC) के उत्थान के लिए गठित किया गया था। मंडल ने इस आयोग का नेतृत्व करते हुए भारतीय समाज में पिछड़े वर्गों की वास्तविक स्थिति का गहन अध्ययन किया और 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट ने देश में आरक्षण की सिफारिश की, जिसमें OBC को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण देने की बात की गई थी।

मंडल आयोग की सिफारिशें समाज में क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक थीं। हालांकि, जब 1990 में वीपी सिंह सरकार ने इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की, तो पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। कई स्थानों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं, लेकिन सामाजिक न्याय और समावेशिता की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम था। मंडल आयोग की सिफारिशें भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुईं और सामाजिक न्याय आंदोलन में मील का पत्थर बनीं। इस निर्णय ने न केवल OBC को सशक्त किया, बल्कि समाज में व्यापक बदलाव भी लाए।

निधन और विरासत

बीपी मंडल का निधन 13 अप्रैल 1982 को हुआ। उनकी पत्नी सीता मंडल से उन्हें पांच बेटे और दो बेटियां थीं। उनका परिवार आज भी राजनीति में सक्रिय है, और उनके सिद्धांतों और विचारधाराओं का प्रभाव उनकी आने वाली पीढ़ियों पर देखा जा सकता है। उनके सम्मान में 2001 में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी की, जो उनके योगदान को मान्यता देने का प्रतीक है। इसके अलावा, 2007 में उनके नाम पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की गई, जो उनकी स्मृति को सम्मान देने और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास है।

निष्कर्ष

बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल ने अपने जीवन को सामाजिक न्याय के लिए समर्पित किया। उनकी अध्यक्षता में मंडल आयोग ने जो सिफारिशें कीं, उन्होंने भारत के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था की, उसने भारतीय समाज में गहरे और दूरगामी बदलाव किए। मंडल आयोग की रिपोर्ट और उसकी सिफारिशें आज भी सामाजिक न्याय के संघर्ष में एक प्रेरणा स्रोत हैं। बीपी मंडल का योगदान भारतीय समाज और राजनीति में हमेशा आदर के साथ स्मरण किया जाएगा। उनके द्वारा किए गए कार्य सामाजिक समावेश और समानता की दिशा में एक मील का पत्थर हैं, जो भारतीय समाज को और भी सशक्त और समतामूलक बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।

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