जयप्रकाश नारायण (11 अक्टूबर 1902 – 8 अक्टूबर 1979), जिन्हें ‘जेपी’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और समाजसेवी थे। इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ उन्होंने ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन की अगुवाई की, जिससे उन्हें ‘लोकनायक’ की उपाधि मिली। 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, और उन्हें 1965 में समाजसेवा के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार भी मिला। उनके सम्मान में पटना हवाई अड्डे और दिल्ली का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ का नामकरण किया गया है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जेपी का जन्म बिहार के सिताब दियारा गांव में 11 अक्टूबर 1902 को हुआ। उन्होंने पटना में शिक्षा प्राप्त की और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। वे बिहार विद्यापीठ में शामिल हुए, जिसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा ने स्थापित किया था। उच्च शिक्षा के लिए 1922 में जेपी अमेरिका गए, जहां उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और विस्कांसिन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने खेतों और रेस्तरां में काम करके अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया। मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित होकर, उन्होंने समाजवाद में गहरी रुचि विकसित की।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
भारत लौटने के बाद, जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। 1932 में गांधीजी और अन्य कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बाद, जेपी ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। उन्हें भी मद्रास में गिरफ्तार किया गया और नासिक जेल भेजा गया, जहां उन्होंने अन्य समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) का गठन किया। 1939 में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जेल से भागकर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए हथियारों का उपयोग करने की वकालत की और नेपाल में आज़ाद दस्ते का गठन किया।
सम्पूर्ण क्रांति और आपातकाल
1970 के दशक में, जेपी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया। 1974 में बिहार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, जिसके तहत जेपी सहित सैकड़ों विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके नेतृत्व में विपक्षी दल एकजुट हुए और 1977 में इंदिरा गांधी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’ में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षिक, और आध्यात्मिक परिवर्तन की बात कही गई थी। उनकी हुंकार ने देशभर में क्रांति की चिंगारी जलाई, और वे घर-घर में क्रांति का प्रतीक बन गए।
निधन और विरासत
जयप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर 1979 को पटना में हुआ। उनके सम्मान में देशभर में 7 दिन का राष्ट्रीय शोक मनाया गया। जेपी की विचारधारा और उनके आंदोलनों ने लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील मोदी जैसे नेताओं को प्रेरित किया।
सम्मान
- भारत रत्न (1999, मरणोपरांत)
- रमन मैगसेसे पुरस्कार (1965, लोकसेवा के लिए)
- राष्ट्रभूषण सम्मान (एफ आई ई फाउण्डेशन)
जयप्रकाश नारायण की प्रमुख पुस्तकों इस प्रकार हैं:–
- “समाजवाद क्यों?”
इस पुस्तक में जयप्रकाश नारायण ने समाजवाद के महत्व और सिद्धांतों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। - “समाजवाद से सर्वोदय की ओर”
इसमें उनके समाजवादी विचारों से सर्वोदय आंदोलन की ओर उनके रुझान और परिवर्तन को दर्शाया गया है। - “कारावास की कहानी”
यह आपातकाल के दौरान जेल में लिखी गई डायरी है, जिसमें उनके राजनीतिक विचार और आपातकाल के दौरान का संघर्ष दर्ज है। - “भारतीय राजनीति का पुनर्निर्माण: एक अपील”
इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव के लिए अपने विचार रखे हैं। - “संपूर्ण क्रांति की ओर”
इसमें जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रांति (संपूर्ण क्रांति) के विचार और भारतीय समाज-राजनीति में व्यापक बदलाव की दिशा में उनके दृष्टिकोण को समझाया गया है।