जन्म: 12 जुलाई 1917
जन्मस्थान: पोईवान, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब बिहार, भाकर्पूरी ठाकुररत में)
निधन: 4 सितंबर 2006 (आयु 89)
मृत्युस्थान: पटना, बिहार, भारत
राजनीतिक दल
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1940–1969, 1984–2006)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-संगठन (1969–1977)
- जनता पार्टी (1977–1984)
पत्नी: श्रीमती किशोरी सिन्हा
संतान: निखिल कुमार
निवास: सोपान, पटना, बिहार
शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उपनाम: छोटे साहेब, सत्येंद्र बाबू, एसएन सिन्हा
सत्येंद्र नारायण सिन्हा (12 जुलाई 1917 – 4 सितंबर 2006) एक भारतीय राजनेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे। उन्हें जेपी आंदोलन के एक प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता है, और आपातकाल के दौरान जेपी नारायण के ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन का समर्थन किया। वे औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सात बार सांसद, बिहार विधानसभा के तीन बार सदस्य और एक बार बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। उन्हें अनुशासनप्रियता और कठोर नेतृत्व के लिए जाना जाता था।
पृष्ठभूमि
सत्येंद्र नारायण सिन्हा का जन्म बिहार के औरंगाबाद जिले के पोईवान गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता, डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे और महात्मा गांधी के साथ चंपारण सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। सत्येंद्र नारायण ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए।
राजनीतिक करियर
स्वतंत्रता के बाद, वे 1950 में बिहार से अनंतिम संसद के लिए चुने गए। उन्होंने 1961 से 1967 तक बिहार की संयुक्त सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में सेवा की और बिहार राज्य की शिक्षा प्रणाली को सुव्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1962 में उन्होंने बोधगया में मगध विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने विभिन्न मुख्यमंत्रियों की सरकारों में नेतृत्व भूमिका निभाई और कई बार मुख्यमंत्री बनने के प्रस्ताव को ठुकराया।
आपातकाल के समय:
सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का विरोध किया और 1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। जनता पार्टी ने 1977 के लोकसभा चुनावों में बिहार की सभी 54 सीटों पर जीत हासिल की, जिसके पीछे सत्येंद्र नारायण का मार्गदर्शन और नेतृत्व था।
मुख्यमंत्री पद:
1989-1990 में, उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और इस दौरान उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी। उनके कार्यकाल में बिहार के शिक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने नबीनगर में एनटीपीसी का सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे 2007 में मंजूरी मिली।
अंतर्राष्ट्रीय योगदान:
सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें 1955 में हेलसिंकी, फिनलैंड में इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन सम्मेलन शामिल है। 1977 में, उन्हें मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए संसद सदस्यों की विशेष समिति का अध्यक्ष चुना गया, जो 1988 तक जारी रहा।
व्यक्तिगत जीवन:
उनकी पत्नी किशोरी सिन्हा पूर्व सांसद थीं, और उनके पुत्र निखिल कुमार नागालैंड और केरल के राज्यपाल रह चुके हैं। सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने अपनी आत्मकथा ‘मेरी यादें, मेरी भूलें’ लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन और राजनीतिक अनुभवों को साझा किया।
आलोचना:
सत्येंद्र नारायण सिन्हा की सरकार की आलोचना 1989 के भागलपुर दंगों के दौरान उनकी निष्क्रियता के लिए की जाती है, जिसमें हजारों मुसलमान मारे गए थे और उनकी सरकार पर दोषारोपण किया गया था कि उन्होंने उचित कार्रवाई नहीं की।
सम्मान:
उनकी स्मृति में पटना में सत्येंद्र नारायण सिन्हा पार्क का निर्माण किया गया है। 2014 में, मगध विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सत्येंद्र नारायण सिन्हा मगध विश्वविद्यालय करने की घोषणा की गई।