Tuesday, October 15, 2024

शेरशाह सूरी: एक महान पठान सम्राट

शेरशाह सूरी, जिनका जन्म फ़रीद खाँ के नाम से हुआ था, एक महत्वपूर्ण भारतीय पठान शासक थे। उन्होंने 16वीं सदी में भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की, जो मुगलों के खिलाफ एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा। शेरशाह की शासनकाल में किए गए प्रशासनिक और सैन्य सुधारों ने भारतीय इतिहास में गहरा प्रभाव डाला।

प्रारंभिक जीवन

शेरशाह सूरी का जन्म 1486 में पंजाब के होशियारपुर जिले में बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ। उनके दादा इब्राहिम खान सूरी उस समय के दिल्ली के शासकों के अधीन एक जागीरदार थे। उनके पिता ज़माल खान, एक अफगान रईस थे। शेरशाह के माता-पिता के बीच संबंधों में समस्याएँ थीं, जिसके चलते उन्हें बचपन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने घर को छोड़कर जौनपुर में पढ़ाई की, जहाँ उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की नींव रखी।

राजनीतिक करियर की शुरुआत

शेरशाह ने अपने करियर की शुरुआत बहार खान नुहानी के दरबार में की, जहाँ उन्होंने एक शिक्षक और सहायक के रूप में कार्य किया। बाद में, उन्होंने बाबर के साथ जुड़कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बहार खान की मृत्यु के बाद, शेरशाह बिहार के राज्यपाल बने और वहाँ प्रशासन का पुनर्गठन शुरू किया।

साम्राज्य की स्थापना

1537 में, शेरशाह ने बंगाल पर हमला किया और उसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूँ को हराकर, शेरशाह ने 1540 में भारत में सूरी साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने हुमायूँ को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और खुद को एक स्वतंत्र सम्राट घोषित किया।

प्रशासनिक सुधार और विकास

शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण सुधार किए

  1. सिक्का प्रणाली: उन्होंने तीन धातुओं की सिक्का प्रणाली विकसित की, जिसमें सोना, चांदी और तांबा शामिल थे। यह प्रणाली बाद में मुगलों द्वारा अपनाई गई।
  2. ग्रैंड ट्रंक रोड: शेरशाह ने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण किया, जो उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ता था। इस सड़क ने व्यापार और यात्रा को सुगम बनाया।
  3. डाक प्रणाली: उन्होंने एक मजबूत डाक प्रणाली स्थापित की, जिससे व्यापारियों और आम लोगों को अपने संदेश भेजने में आसानी हुई।
  4. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: शेरशाह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए। उन्होंने मस्जिदों के लिए पैसे देने की प्रथा को समाप्त कर दिया और मस्जिदों की देखभाल के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की।

सैन्य रणनीति और युद्ध

शेरशाह सूरी एक कुशल सैन्य नेता थे। उन्होंने कई सफल युद्ध लड़े, जिनमें बक्सर की लड़ाई प्रमुख थी। उनकी सैन्य रणनीतियों ने उन्हें अपने साम्राज्य को विस्तार करने में मदद की। उन्होंने सशस्त्र बलों को संगठनात्मक रूप से सुधार किया, जिससे उनकी सेना और भी मजबूत हो गई।

मृत्यु और विरासत

22 मई 1545 को, शेरशाह सूरी की मृत्यु कालिंजर की घेराबंदी के दौरान हुई। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा किए गए सुधार और व्यवस्थाएँ मुगलों द्वारा अपनाई गईं, विशेषकर सम्राट अकबर के शासनकाल में। शेरशाह का मक़बरा सासाराम में स्थित है, जो उनकी महानता और कार्यों का प्रतीक है।

शेर शाह सूरी का मकबरा: भव्यता और ऐतिहासिकता का प्रतीक

यह मकबरा एक विशाल तालाब के बीच स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 22 एकड़ है। इसकी लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 1130 फीट और चौड़ाई (उत्तर से दक्षिण) 865 फीट है। मकबरे तक पहुँचने के लिए, व्यक्ति को तालाब के उत्तर में स्थित शेर शाह के मुंशी के छोटे गुम्बददार मकबरे से गुजरना पड़ता है। तीनों मंजिलों पर बने टॉवर इसके भव्यता में चार चाँद लगाते हैं और यह पठान वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इस कारण कनींधम ने इसे ताजमहल से भी बेहतर माना है।

शेर शाह सूरी का मकबरा बिहार राज्य के सासाराम नगर में स्थित है। यह मकबरा सम्राट शेर शाह सूरी की याद में बनाया गया था, जो बिहार के एक पठान थे, जिन्होंने मुगलों को हराया और उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की। उनका निधन 13 मई 1545 को कालिंजर के किले में एक आकस्मिक बारूद विस्फोट में हुआ।

निष्कर्ष

शेरशाह सूरी का जीवन और शासन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनके द्वारा किए गए सुधार, उनकी प्रशासनिक दक्षता और सैन्य कुशलता ने भारत की राजनीतिक संरचना को नए आयाम दिए। शेरशाह की विरासत आज भी भारतीय इतिहास में एक प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।

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