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भगवान महावीर: जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर और उनके जीवन का दार्शनिक महत्व

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भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह, और अनेकांतवाद के सिद्धांतों के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। महावीर स्वामी का जीवन और उनके द्वारा दिए गए उपदेश न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनके विचारों का सामाजिक और नैतिक प्रभाव भी अनगिनत जीवनों पर पड़ा। उनका जीवन सादगी, तपस्या, और करुणा का प्रतीक माना जाता है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

महावीर का जन्म 599 ई.पू. वैशाली के क्षत्रियकुंड ग्राम में इक्ष्वाकु वंश के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ हुआ। जन्म के समय उनका नाम वर्धमान रखा गया क्योंकि उनके जन्म के बाद राज्य में समृद्धि और उन्नति होने लगी। जैन ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि भगवान महावीर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के निर्वाण के 188 वर्ष बाद जन्मे थे। उनका परिवार क्षत्रिय वर्ग का था, लेकिन महावीर ने प्रारंभ से ही सांसारिक जीवन में रूचि नहीं दिखाई।

विरक्ति और संन्यास

30 वर्ष की आयु में महावीर ने संसार के मोह और राजसी वैभव को त्याग दिया और संन्यास का मार्ग अपनाया। उन्होंने वैराग्य का वरण करते हुए अपने परिवार और राज्य का परित्याग किया। महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की और मौन साधना की। इन वर्षों में उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा, परन्तु उनकी तपस्या और साधना अडिग रही। अंततः, 42 वर्ष की आयु में उन्हें केवलज्ञान (अन्तिम और सम्पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति हुई, जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में उपदेश देना प्रारंभ किया।

पंच महाव्रत और जैन धर्म के सिद्धांत

महावीर ने अपने जीवनकाल में जैन धर्म के पांच मुख्य सिद्धांतों (पंच महाव्रत) का प्रचार किया, जिन्हें आज भी जैन अनुयायी अपने जीवन में धारण करते हैं।
  1. अहिंसा (Non-violence): महावीर का अहिंसा का सिद्धांत न केवल शारीरिक हिंसा से बचने की बात करता है, बल्कि मन, वचन और कर्म से भी किसी को नुकसान न पहुँचाने का आह्वान करता है।
  2. सत्य (Truth): महावीर के अनुसार सत्य ही एकमात्र मार्ग है जो आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा, “जो सत्य की खोज में है, वह मृत्यु के भय से परे है।”
  3. अचौर्य (Non-stealing): दूसरों की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना लेने को महावीर ने पाप कहा। उनका संदेश था कि ईमानदारी और संतोष ही जीवन को संतुलित बनाए रखते हैं।
  4. ब्रह्मचर्य (Celibacy): महावीर ने ब्रह्मचर्य को संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक बताया। यह तपस्या और मोक्ष के मार्ग का अनिवार्य हिस्सा है।
  5. अपरिग्रह (Non-possession): महावीर का अपरिग्रह का सिद्धांत यह सिखाता है कि आवश्यकता से अधिक संसाधनों का संचय न किया जाए। यह विचार आज भी समाजवाद और समता की धारणाओं से जुड़ा हुआ है।

अनेकांतवाद और स्यादवाद

महावीर ने अनेकांतवाद और स्यादवाद के सिद्धांतों को भी स्पष्ट किया। उनका मानना था कि हर घटना या वस्तु को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, और सत्य एकांगी नहीं होता। यह सिद्धांत जैन दर्शन की बुनियाद मानी जाती है, जो यह सिखाता है कि किसी भी विचार या विषय पर विचार करते समय एक ही दृष्टिकोण से सत्य को नहीं समझा जा सकता।

तपस्या और ऊपसर्ग

महावीर की साधना के दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जैन धर्म के ग्रंथों में उनके ऊपर हुए अनेक ऊपसर्गों का उल्लेख मिलता है। इन ऊपसर्गों के बावजूद उन्होंने अहिंसा और शांति का संदेश बनाए रखा। महावीर की तपस्या ने उन्हें साधारण मनुष्य से देवतुल्य बना दिया।

मोक्ष और निर्वाण

भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में, कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन, बिहार के पावापुरी नामक स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया। यह वही स्थान है जहां महावीर ने अपनी अंतिम यात्रा की और देह त्यागी। पावापुरी में स्थित जल मंदिर उनकी स्मृति में निर्मित है और यह स्थान जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है।

महावीर का प्रभाव और जैन समाज

भगवान महावीर ने जैन समाज को अहिंसा, सत्य, और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों से जोड़ा। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और समाज में नैतिकता, शांति, और समानता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। उनके उपदेशों का प्रभाव केवल जैन समाज तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने समस्त मानवता को प्रेरित किया।

साहित्य में भगवान महावीर

जैन ग्रंथों में भगवान महावीर के जीवन और उपदेशों का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। ‘कल्पसूत्र’ महावीर के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनकी शिक्षाओं का एक प्रमुख स्रोत है। यह ग्रंथ विशेष रूप से जैन धर्म के पर्वों और त्योहारों के दौरान पढ़ा जाता है। इसमें महावीर के जन्म, तपस्या, केवलज्ञान, और मोक्ष की घटनाओं का वर्णन किया गया है। ‘कल्पसूत्र’ के अनुसार, महावीर स्वामी की तपस्या और उपदेशों ने लाखों लोगों को आध्यात्मिक और नैतिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

महावीर का संदेश आज के समाज में

भगवान महावीर का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। उनके विचारों का प्रभाव समाज के प्रत्येक वर्ग पर देखा जा सकता है। महावीर के द्वारा दिया गया अहिंसा का सिद्धांत आज भी सामाजिक संघर्षों और विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। उनका ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत हमें दूसरों के प्रति सम्मान और सहानुभूति रखने का संदेश देता है।

निष्कर्ष

भगवान महावीर का जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणादायक हैं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि जीवन का असली उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति है। उनका आदर्श जीवन और उपदेश हमें सादगी, संयम, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

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