Friday, October 25, 2024

बिहार की चित्रकला – सांस्कृतिक विरासत और कलात्मकता का अद्भुत संगम

बिहार की चित्रकला भारतीय संस्कृति, धर्म, और इतिहास की समृद्ध विरासत को दर्शाती है। इसमें प्रमुख रूप से मिथिला (मधुबनी), पटना कलम और मंदिर चित्रकला शामिल हैं। गुप्त काल में उत्पन्न इस कला में समकालीन विषयों और प्राचीन डिजाइनों का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। कलाकार पीले, गुलाबी, नींबू, गहरे लाल, हरे, नीले और काले जैसे तीव्र रंगों का उपयोग करते हैं। मधुबनी और पटना कलम जैसी कला शैलियाँ आज भी विश्वस्तरीय पेंटिंग तकनीकों का हिस्सा हैं, जो बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती हैं।

Types of paintingsबिहार की चित्रकला के प्रकार

बिहार की चित्रकला में विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की अभिव्यक्ति होती है। प्रमुख कलाओं में मिथिला चित्रकला (मधुबनी), जो मैथिली लोक कला और तंजोर शैली से प्रेरित होती है, विशेष स्थान रखती है। पटना कलम चित्रकला शहरी जीवन, धर्म और वास्तुकला पर आधारित होती है। इसके अलावा, बिहार के मंदिरों, जैसे महाबोधि मंदिर और नालंदा महाविहार, में भी उत्कृष्ट चित्रकला के उदाहरण मिलते हैं। ये सभी स्थल देश-विदेश के दर्शकों को अपनी कला और संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं।

मधुबनी चित्रकला – Madhubani Painting

मधुबनी कला, जिसे मिथिला कला भी कहा जाता है, उत्तर भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र की प्रसिद्ध चित्रकला शैली है, जो मुख्य रूप से बिहार के मधुबनी जिले में विकसित हुई। यह पारंपरिक रूप से महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और इसमें गहरे रंगों का प्रयोग किया जाता है, जैसे लाल, काला, हरा और नीला। मधुबनी चित्रकला में पौधों, मछलियों, पक्षियों और अन्य प्राकृतिक तत्वों का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। यह कला अपनी विशिष्ट शैली और रंग संयोजन के कारण लोकप्रिय है, और इसे दीवारों, वस्त्रों और आर्ट पेपर पर चित्रित किया जाता है।

भोजपुरी पेंटिंग – Bhojpuri Painting

भोजपुरी चित्रकला उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में विकसित एक पारंपरिक लोक कला है, जो साधारण जीवन की सुंदरता को दर्शाने के लिए प्रसिद्ध है। इसका प्रमुख विषय भगवान शिव और देवी पार्वती होते हैं, और यह मंदिरों व नवविवाहितों के शयनकक्षों में चित्रित की जाती है। इस कला में खेती, बाजार, शहरी और ग्रामीण जीवन जैसे विषयों का चित्रण किया जाता है। चित्रों में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग, जैसे लाल, पीला, हरा, और नीला, होता है, और आकृतियों में गति और गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

तिकुली पेंटिंग – Tikuli Painting

तिकुली पेंटिंग बिहार की एक प्राचीन कला है, जो पटना, मुजफ्फरपुर, मधुबनी और वैशाली जैसे जिलों में प्रचलित है। इसका नाम “तिकुली” छोटे-छोटे बिंदुओं या टुकड़ों के कारण पड़ा। इस चित्रकला में प्राकृतिक रंगों जैसे लाल, हरा, पीला और नीला का प्रयोग किया जाता है। चित्रों में धार्मिक और सामाजिक विषयों के साथ-साथ झूले, पंछी, तारे, और फूलों को दर्शाया जाता है। पहले इसमें कांच की पतली चादरों से बिंदियां बनाई जाती थीं और सोने-चांदी की पन्नी से सजावट होती थी, परंतु अब इसे सजावटी वस्तुओं के रूप में भी विस्तार दिया गया है।

मंजूषा पेंटिंग – Manjusha Painting 

मंजूषा पेंटिंग बिहार की एक प्रसिद्ध लोक कला है, जिसका इतिहास भक्ति और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसे मुख्य रूप से विष्णु भगवान और उनके अवतारों की कहानियों को चित्रित करने के लिए जाना जाता है।

यह चित्रकला अपनी विशिष्ट रंग योजना के लिए जानी जाती है, जिसमें लाल, पीला, हरा और काले रंग का उपयोग किया जाता है। रेशम या कागज पर बनाई जाने वाली इन चित्रों में सामाजिक और धार्मिक विषयों को दर्शाया जाता है। इसके साथ ही स्थानीय वस्तुएं और भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक भी इसमें शामिल होते हैं, जैसे गांधी टोपी, लोटा और चूड़ी।

पटना कलम – Patna Kalam

पटना कलम बिहार की एक प्रसिद्ध चित्रकला शैली है, जो मुख्य रूप से मुगल शासनकाल में विकसित हुई। यह कला फारसी और ब्रिटिश कंपनी शैलियों के प्रभाव में आई और मुगल चित्रकला की शाखा के रूप में वर्गीकृत की गई। पटना शहर, जो बंगाल, बिहार और अवध के प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्रों में से एक था, इस कला का उद्गम स्थल बना। इसमें पत्थर, शीशम, कारीगरी और नक्काशी का उपयोग होता है और इसे मस्जिदों, मकबरों, खंडहरों और पार्कों में उकेरा जाता है। पटना कलम में मुगल और पारंपरिक बिहारी संस्कृति के सम्मिश्रण के कारण इसकी विशिष्टता और महत्व आज भी बरकरार है।

थांका चित्रकला-Thangka Painting

Thangka Painting (नेपाल भाषा: पौभा किपा) नेपाली और तिब्बती संस्कृति की अनूठी अभिव्यक्ति है, जो तिब्बती धर्म और दार्शनिक मूल्यों को दर्शाती है। यह कला सामान्यत: सूती कपड़े पर बनाई जाती है और महायान तथा बज्रयान बौद्ध धर्म में इसका विशेष महत्व है।

थांका की निर्माण शैली में एक मुख्य देवता या गुरु का चित्र होता है, जिसे चारों ओर संबंधित तत्वों से सजाया जाता है। लोककथाओं के अनुसार, नेपाल की राजकुमारी भ्रीकुटी ने थांका को तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लाया था। नेपाल के नेवार समुदाय के चित्रकार थांका बनाने में माहिर होते हैं।

बिहार की चित्रकला – FAQs

बिहार की एक प्रसिद्ध पेंटिंग का नाम बताएं?

मधुबनी पेंटिंग बिहार की प्रसिद्ध लोक पेंटिंग है। यह मुख्य रूप से बिहार राज्य के मधुबनी जिले के मधुबनी शहर, जितवारपुर गाँव और रांटी गाँव में किया जाता है।

बिहार की जनजातीय चित्रकला को किस विशेष नाम से जाना जाता है?

मधुबनी पेंटिंग्स को बिहार की जनजातीय पेंटिंग्स भी कहा जाता है।

बिहार का चित्रकला विद्यालय कौन सा है?

पटना स्कूल ऑफ पेंटिंग, जिसे पटना कलम के नाम से भी जाना जाता है, 18वीं और 19वीं शताब्दी में बिहार में विकसित भारतीय चित्रकला की एक अनूठी शैली है।

मधुबनी पेंटिंग का आविष्कार किसने किया?

मधुबनी चित्रों की उत्पत्ति का इतिहास स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह कला 8वीं या 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में विकसित हुई। कहा जाता है कि मिथिला साम्राज्य के राजा जनक ने अपनी बेटी सीता की शादी के क्षणों को कैद करने के लिए इन चित्रों को बनाने का आदेश दिया था, जो हिंदू महाकाव्य रामायण से संबंधित हैं। इस कला में सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व निहित है।

भागलपुर पेंटिंग का क्या नाम है?

मंजूषा कला के नाम से जाना जाता है।

मधुबनी पेंटिंग का मुख्य विषय क्या है

मधुबनी पेंटिंग का मुख्य विषय भारतीय धार्मिक रूपांकनों और मान्यताओं से गहराई से प्रभावित है। इस कला में देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया जाता है। चित्रों में जीवंत रंगों और जटिल डिजाइन का उपयोग किया जाता है, जो इसकी विशेषता हैं। इस कला का संबंध मिथिला क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं से है, और यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक पहचान को भी व्यक्त करती है।

Facebook Comments

इसे भी पढ़े

इसे भी पढ़े

बिहारी खानपान

बिहारी खानपान

इसे भी पढ़े