आज हम बिहार के उस क्रांतिकारी शख्स के बारे में बात करेंगे जिनके क्रांन्तिकारी योगदान ने बिहार के स्वतंत्रता आंदोलन में एक नयी जान फूंक दी थी ।वे हैं शहीद पीर अली |
शहीद पीर अली लखनऊ के रहने वाले थे पर आजीविका के लिए वे लखनऊ से पटना आकर बस गए ।
स्वंतंत्रता संग्राम में शहीद पीर अली की भूमिका
हमें पता है की 1857 की क्रांति ने बिहार को भी प्रभावित किया। आगरा, मेरठ तथा दिल्ली की भाँति बिहार के कई क्षेत्रों गया, छपरा, पटना, मोतिहारी तथा मुजफ्फरपुर में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया था और सैकड़ो ब्रितानियों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया।
इससे मुकाबला करने के लिए ब्रितानियों ने दानापुर में एक छावनी की स्थापना की, । स्वदेशियों की सातवीं, आठवीं तथा चालीसवीं पैदल सेनाएँ भीं, जिन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक विदेशी कंपनी और तोप सेना रखी गई थी।
पटना के नागरिकों ने अंग्रेज के खिलाफ इसके लिए संगठन स्थापित किए थे , जिसमें शहर के व्यवसायी एवं धनी वर्ग के लोग सम्मिलित थे।
पटना का प्रधान सेनापति मेजर जनरल लायड था और टेलर कमिश्नर था, उसका यह मानना था कि पटना के मुसलमान भी इस क्रांति में हिंदुओं के साथ भाग लेंगे। पटना में बहावी मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक थी।अतः टेलर ने वहाबी मुस्लिम नेताओं पर कड़ी नज़र रखना प्रारंभ कर दिया।
पटना के कुछ मौलवियों का लखनऊ के गुप्त संगठनों से पत्र व्यवहार चल रहा था। उनका दानापुर के सैनिकों से भी संपर्क हो चुका था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस वाले भी क्रांतिकारियों का सहयोग कर रहे थे। दानापुर के सैनिक भी वृक्षों के नीचे गुप्त बैठकें किया करते और क्रांति की योजना बनाते थे।
दानापुर के सैनिक मेरठ सैनिकों के असन्तोष के बारे में जानते थे, परन्तु वे अवसर की प्रतिक्षा में थे। टेलर को पता चला कि दानापुर के सैनिकों में असन्तोष व्याप्त है, तो उसने विस्फोट होने से पूर्व ही उसे कुचलना उचित समझा। इसके लिए उसने तुरन्त प्रभावशाली कदम उठाए, जिसके कारण वहाँ क्रांति भीषण रूप धारण नहीं कर सकी। हाँ, तीन जुलाई को एक छोटी सी क्रांति अवश्य हुई, जिसे ब्रितानियों ने सिक्ख सैनिकों की सहायता से कुचल दिया।
पीर अली लखनऊ के रहने वाले थे। उनके बारे में विशेष जानकारी तो प्राप्त नहीं होती, पर इतना अवश्य पता चलता है कि वे एक साधारण व्यक्ति थे, जिनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
पीर अली लखनऊ से पटना आकर बस गए। आजीविका के लिए उन्होंने पुस्तक ब्रिकी का व्यवसाय प्रारंभ किया। वे चाहते तो अन्य काम भी कर सकते थे। पर उनका मुख्य उद्देश्य लोगों में क्रांति संबंधित पुस्तकों का प्रचार करना था। वे पहले पुस्तक पढ़ते और इसके बाद दूसरों को पढ़ने के लिए देते थे। वह पुरुष धन्य है, जो अपने ज्ञान को अपने तक ही समिति नहीं रखकर समस्त जनता को लाभान्वित करता है।
पीर अली भारत माता को दासता की बेड़ियों से मुक्त करनवाना चाहते थे। उनका मानना था कि गुलामी से मौत ज्यादा बहेतर होती है। उनका दिल्ली तथा अन्य स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ बहुत अच्छा सम्पर्क था। वे उनसे समय-समय पर निर्देश प्राप्त करते थे। जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आता, वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।
यद्यपि वे साधरण पुस्तक विक्रेता थे, तथापि उन्हें पटना के विशिष्ट नागरिकों का समर्थन प्राप्त था। क्रांतिकारी परिषद् पर उनका अत्यधिक प्रभाव था। उन्होंने धनी वर्ग के सहयोग से अनेक व्यक्तियों को संगठित किया और उनमें क्रांति की भावना का प्रसार किया। लोगों ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वे ब्रिटिशी सत्ता को जड़मूल से नष्ट कर देंगे। जब तक हममें रक्त की धारा प्रवाहित होती रहेगी, हम फिरंगियों का विरोध करेंगे, लोगों ने कसमे खाईं।
तिरहुत ज़िले के पुलिस जमादार वारिस अली पर ब्रितानियों को संदेह हुआ और उन्हें तुरंत गिरफ़्तार कर लिया गया। उसके घर छापा डाला गया, जिसमें आपत्तिजनक काग़ज़ात प्राप्त हुए। इस अभियोग में उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। तत्पश्चात् अनेक क्रांतिकारियों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। नागरिकों के हथियार लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
रात को नौ बजे घर से निकलने पर रोक लगा दी गई और कर्फ्यू लगा दिया गया। परिणाम स्वरूप क्रांतिकारी रात्रि को मीटिंग नहीं बुला सकते थे। बिहार के ही एक प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी पीरअली के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। वे सिर्फ़ मुसलमानों के ही नेता नहीं थे, अपितु उन्हें समस्त क्रांतिकारियों का विश्वास एवं समर्थन प्राप्त था।
टेलर ने पटना में दमन चक्र चलाना शुरू किया, तो पीर अली ने विद्रोह कर दिया। उनके स्वभाव में अद्भूत तीव्रता तथा उतावलापन था। वे देशवासियों का अपमान सहन नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने जनता को सरकार के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी और स्वंय संग्राम में कूद पड़े।
पटना (बिहार) में पेशे से जिल्दसाज पीर अली क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की गतिविधियों का गुप्त संदेश देते थे जिसकी सहायता से क्रांतिकरी लोग अपने आंदोलन को अंजाम देते थे ।विद्रोह के दौरान बिहार में पहली बड़ी घटना 3 जुलाई की पटना विद्रोह थी, जिसका नेतृत्व पीर अली ने किया था । इस तारीख को पटना ओपियम एजेंसी के डिप्टी ओपियम एजेंट, डॉ लिएल की हत्या कर दी गई थी। । गंगाटिक बिहार, बनारस-गाज़ीपुर क्षेत्र के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों में अफीम उत्पादन का मुख्य क्षेत्र था। पीर अली पर डॉ लिएल की हत्या का आरोप लगाया गया, दोषी ठहराया गया
पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने खान और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया और अंग्रेजी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली के साथ घासिता, खलीफा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ सिपाही, जुम्मन, मदुवा, काजिल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था। पीर अली ने निडर होकर हंसते-हसंते मृत्यु को आलिंगन कर लिया।
“हाथों में हथकड़ियाँ, बाँहों में रक्त की धारा, सामने का फंदा, पीर अली के मुख पर वीरोचित मुस्कान मानों वे सामने कहीं मृत्यु को चुनौती दे रहे हों। महान शहीद ने मरते-मरते कहा था, “तुम मुझे फाँसी पर लटका सकते हों, किंतु तुम हमारे आदर्श की हत्या नहीं कर सकते। मैं मर जाऊँगा, किंतु मेरे रक्त से सहस्त्रों योद्धा जन्म लेंगे और तुम्हारे साम्राज्य को नष्ट कर देंगे।” कमिश्नर टेलर ने लिखा है कि पीर अली ने मृत्यु दंड के समय बड़ी वीरता तथा निडरता का परिचय दिया।
पीर अली का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी मृत्यु के बाद 25 जुलाई को दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के बाबू कुंवरसिंह के नेतृत्व में दानापुर की देशी पलटनों ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
ऐसे गुमनाम शहीदो को श्रद्धांजलि देने वाले आज बहुत कम हैं मगर जिन्होंने देश के लिए अपने जान की आहुति दे दी उनको अपना मक़सद प्यारा था ना की नाम और शोहरत।
ऐसे जांबाज़ योद्धा को शत शत नमन