Tuesday, November 12, 2024

बिहार में साइमन कमीशन का विरोध – स्वराज की दिशा में अहम कदम

साइमन कमीशन का विरोध बिहार के स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक पल था। यह आंदोलन न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने बिहार में स्वतंत्रता की भावना को भी मजबूती दी।सन् 1919 के अधिनियम के अनुसार, इसके क्रियान्वयन की जाँच के लिए 10 वर्षों के भीतर एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान था। इस व्यवस्था के आधार पर 8 नवम्बर 1927 को ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया, जिसमें सात ब्रिटिश सदस्य शामिल थे।

साइमन कमीशन का उद्देश्य

  1. भारतीय प्रांतों में सरकारों का कार्य संचालन का मूल्यांकन करना।
  2. प्रतिनिधि संस्थाओं की कार्यप्रणाली की जाँच करना।
  3. शिक्षा के विकास का आकलन करना।
  4. उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत की सफलता-असफलता का विश्लेषण करना।

आयोग का उद्देश्य था भारत में उत्तरदायी सरकार की व्यवस्था में आवश्यक सुधार के सुझाव देना।

साइमन कमीशन का आगमन और बिहार में प्रतिक्रिया

तिथिस्थानघटनाएँ
फरवरी 1928बॉम्बेसाइमन कमीशन का भारत में आगमन
9 दिसंबर 1928पटना27वां बिहार प्रांतीय सम्मेलन आयोजित, जहाँ बहिष्कार का आह्वान हुआ
12 दिसंबर 1928पटनापटना रेलवे स्टेशन पर साइमन कमीशन का विरोध, 30,000 लोगों की भीड़

कांग्रेस और मुस्लिम लीग का योगदान

साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए प्रमुख कांग्रेस नेता जैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद, और राम दयालु सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, प्रांतीय मुस्लिम लीग ने भी बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया, जिसमें नेता एस.के. सहाय ने 18 दिसंबर 1928 को रांची में बैठक की अध्यक्षता की।

प्रमुख विरोध स्थल और हड़तालें

साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में पटना, गया, शाहाबाद, मुजफ्फरपुर और हाजीपुर में व्यापक हड़तालें हुईं, जिसमें अली इमाम और हसन इमाम जैसे नेताओं का योगदान रहा।

Simon Commission के विरोध में मुँगेर बैठक

7 नवंबर 1928 को मुँगेर के दुर्गा स्थान में कांग्रेस समिति की बैठक आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता तजेश्वर प्रसाद ने की। मँगल देव और नंद कुमार जैसे नेता भी इस बैठक में शामिल हुए और साइमन कमीशन के बहिष्कार पर चर्चा की। श्रीकृष्ण सिंह ने पचास हजार काले झंडों से स्वागत का प्रस्ताव रखा, जिससे जनता में विरोध की भावना और अधिक प्रबल हुई।

स्वदेशी आंदोलन और ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार

बिहार में साइमन कमीशन के विरोध ने जनता को आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाया, जो स्वराज आंदोलन का एक अहम हिस्सा था।

साइमन कमीशन और बिहार में विरोध: FAQ

साइमन कमीशन का उद्देश्य क्या था?

ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन का गठन भारतीय प्रांतों में सरकार के कार्य संचालन का मूल्यांकन, प्रतिनिधि संस्थाओं की कार्यप्रणाली की जाँच, शिक्षा का आकलन, और उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत की सफलता-असफलता का विश्लेषण करने के लिए किया था।

साइमन कमीशन का गठन कब हुआ और इसमें कौन शामिल थे?

साइमन कमीशन का गठन 8 नवंबर 1927 को हुआ। इसमें सात ब्रिटिश सदस्य शामिल थे और इसका नेतृत्व सर जॉन साइमन कर रहे थे।

बिहार में साइमन कमीशन का विरोध कब शुरू हुआ?

बिहार में साइमन कमीशन के विरोध की शुरुआत 9 दिसंबर 1928 को पटना में हुई, जहाँ 27वें बिहार प्रांतीय सम्मेलन में इसके बहिष्कार का आह्वान किया गया।

कौन-कौन से प्रमुख नेता साइमन कमीशन के विरोध में शामिल थे?

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद, राम दयालु सिंह, और अली इमाम जैसे प्रमुख कांग्रेस नेता, साथ ही प्रांतीय मुस्लिम लीग के नेता एस.के. सहाय और हसन इमाम इस विरोध में शामिल थे।

साइमन कमीशन का बिहार में मुख्य विरोध स्थल कौन-कौन से थे?

पटना, गया, शाहाबाद, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर और मुँगेर मुख्य विरोध स्थलों में थे, जहाँ व्यापक हड़तालें और विरोध प्रदर्शन हुए।

मुँगेर बैठक का क्या महत्व था?

7 नवंबर 1928 को मुँगेर में कांग्रेस समिति की बैठक हुई, जिसमें तजेश्वर प्रसाद की अध्यक्षता में साइमन कमीशन के बहिष्कार पर विचार हुआ। श्रीकृष्ण सिंह ने काले झंडों से स्वागत का प्रस्ताव दिया, जिससे जनता में विरोध की भावना और प्रबल हुई।

स्वदेशी आंदोलन का साइमन कमीशन विरोध से क्या संबंध था?

साइमन कमीशन के विरोध ने लोगों को ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने की प्रेरणा दी, जिससे आर्थिक स्वतंत्रता की भावना को मजबूती मिली।

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