अगर आपको बिहार में कभी बिहारशरीफ जाने का मौका मिले तो आपको हिरण्य पर्वत की यात्रा अवश्य करनी चाहिए ।
हिरण्य पर्वत बिहारशरीफ में स्थित एक रमणीक स्थान है । पहाड़ी के एक छोर पर मकबरा है तो दूसरे छोर पर हनुमान मंदिर काफी पुराना है और शिव मंदिर हाल के वर्षो में बनाया गया है। यह जगह काफी सुरम्य है। इसे लोग बड़ा पहाड़ कहते हैं। बिहार सरकार इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है।
अब बात करते है इस जगह से जुड़े इतिहास की
आर्चाय चतुरसेन लिखित ‘देवांगना’ के आमुख में लिखा था उन्होंने कि आजकल जिसे बिहारशरीफ कहते हैं ,तब यह उदन्तपुरी कहाता था और वहां एक महाविहार था। उदंतपुरी के निकट ही विश्वख्यात नालंदा विश्वविद्यालय था। जब मुहम्मद-बिन-खिलजी ने धर्मकेंद्रों को ध्वंस कर सैकड़ों वर्षों से संचित धन संपदा, मंदिर और मठ लूट लिया और वहां के पुजारियों, भिक्षुओं और सिद्धों का कत्लेआम किया तब बौद्धधर्म का ऐसा विनाश हुआ कि कोई नामलेवा न रहा।
बड़ा पहाड़ और आसपास के पत्थरों की बनावट देखकर म ऐसा लगता है हो न हो यह कालखंंड के उस समय में बौद्धों का विहार स्थल या शरणस्थली जरूर रही होगी। इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि चीनी यात्री फाह्रयान और ह्वेनसांग ने यात्रा वृतांत में लिखा है कि राजगीर और गंगा के मध्य निर्जन पहाड़ी पर बुद्ध ने सन् 487-488 ई. पूर्व वर्षावास किया था। यह पहाड़ी उदंतपुरी नगर में अवस्थित थी। उदंतपुरी विश्वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह विख्यात था। परंतु उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण इस विश्वविद्यालय का इतिहास धरती के गर्भ में छुपा हुआ है।
फ़्रांसिसी सर्वे करने वाले यात्री बुकानन और कनिंघम ने आधुनिक बिहारशरीफ शहर जो कि नालंदा जाने के मार्ग में पड़ता है, वहाँ एक विशाल टीले का उल्लेख किया है। यहाँ के एक बौद्ध देवी की कांस्य की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस पर एक अभिलेख अंकित है जिसमें ‘एणकठाकुट’ का नाम उल्लेखित है। यह उदन्तपुरी का निवासी था। शायद इसी अभिलेख के आधार पर इस स्थान की पहचान उदन्तपुरी विश्वविद्यालय से की गई है।
इस जगह का नाम उदन्तपुरी इसलिए पड़ा
इस जगह का नाम उदन्तपुरी इसलिए पड़ा क्योंकि यह हिरण्य पर्वत की ऊंचाई से शुरू होकर नीचे जमीन तक ढलान के रूप में था। कहते हैं कि यहां करीब एक हजार विद्वान और बौद्ध विद्यार्थी का आवास भी था। इन्हीं बौद्ध विद्वानों ने बाद में बौद्ध धर्म को तिब्बत में फैलाया था।
बहरहाल, इतिहास से वर्तमान में वापस आएं तो यह जगह वास्तव में इतनी रमणीय है कि सारा दिन गुजारा जा सकता है। पहाड़ी पर एक ओर मकबरा है तो दूसरी ओर मंदिर। 1353 में शासक इब्राहिम बयां की मृत्यू हुई तो उसे पहाड़ी पर दफनाया गया और भव्य मकबरे का निर्माण किया गया था, जो आज भी मौजूद है।
सरकार इसे इको पार्क के रूप में विकसित कर रही है।
जब भी मौका मिले आप सब जरूर जाएँ और इस सुन्दर रमणीक जगह को देखें । बहुत अच्छा लगेगा ।
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