Friday, October 18, 2024

हिंदू प्रोफेसर कर रहे हैं कुरान का संस्कृत अनुवाद

गंगा-जमुनी तहजीब बिहार की परंपरा रही है |बिच- बिच में कुछ असामाजिक तत्त्व इस डोर को तोड़ने की कोशिश जरूर करते हैं लेकिन इसी समाज में कुछ बुद्धिजीवी लोग भी हैं जो इस डोर को हमेशा मजबूत करना चाहते हैं, रिटायर्ड प्रोफेसर रामप्रिय शर्मा उसी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं |

74 बरस के रामप्रिय शर्मा मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथ कुरान का संस्कृत में अनुवाद कर ऐसा कर रहे हैं. वो कहते हैं, ‘मेरा मकसद है कि समाज में इस्लाम को लेकर जो गलत धारणाएं हैं वो दूर हो सकें. लोग असलियत को समझ सकें जिससे कि सब मेल-मोहब्बत के साथ जिएं |

रामप्रिय शर्मा आगे कहते हैं, ‘बिना पढ़े किसी धर्म के बारे में जो टीका-टिप्पणी होती है, उसमें सही नहीं है . यह मात्रा लोगो का पूर्वाग्रह होता है|

पद्य शैली में कुरान का अनुवाद पहले से मौजूद है. रामप्रिय इसका अनुवाद गद्य शैली में कर रहे हैं. उनके मुताबिक पद्य शैली में पाठक छंद में बंधे रहते हैं. पद्य में भाव पूरी तरह से जाहिर नहीं होते लेकिन गद्य में सही भावना निकल के सामने आती है है |

संस्कृतभाषा की पहुँच बहुत काम लोग तक है , ऐसे में उनके अनुवाद का मकसद कैसे पूरा होगा? इसके जवाब में वो कहते हैं, ‘इस सीमा को ध्यान में रखकर ही मैं संस्कृत के साथ-साथ इसका हिंदी अनुवाद भी कर रहा हूं.|

Manuscript-of-translation-of-Rampriya-Sharma-1
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हिंदी में कुरान उपलब्ध होने पर उनका कहना है कि दरअसल उसमें उर्दू को केवल देवनागरी लिपि में लिख दिया गया है.लेकिन वे हिंदी और संस्कृत दोनों भाषा में कुरान की भावना से लोगो को अवगत कराएँगे |

रामप्रिय शर्मा मूल रूप से पटना जिले के जगदीशपुर गांव के निवासी हैं. अभी वो पटना में कंकड़बाग इलाके के चांदमारी रोड में रहते हैं. लगभग दो दशक पहले एक सहकर्मी से कुरान उपहार में मिलने पर उन्हें इसके संस्कृत अनुवाद का ख्याल आया था|

वैसे तो रामप्रिय भागलपुर स्थित तिलका मांझी विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रह चुके हैं. वो बताते हैं कि लगातार संस्कृत में लिखते-पढ़ते रहने से उनका इस भाषा से मतबूत रिश्ता बना रहा. उनका यहां तक कहना है कि उन्होंने हिंदी से ज्यादा संस्कृत में काम किया है |

holy Quraan
holy Quraan

श्री शर्मा का मकसद पूरा अनुवाद होने पर एक पुस्तक का प्रकाशनकरने का है |

शुरुआत में उनकी योजना कुरान के केवल पांच पारे के अनुवाद और उसके प्रकाशन की थी. इस मकसद के लिए वो पटना स्थित ऐतिहासिक खुदाबख्श खां लाइब्रेरी के तत्कालीन निदेशक इम्तियाज अली से मिले थे. तब उन्होंने कहा था कि पूरा अनुवाद होने पर ही वो इसके प्रकाशन के बारे में सोचेंगे |

रामप्रिय शर्मा कुरान का पूरा अनुवाद करने के लिए लगभग ढाई साल से जुटे हैं. अब तक वो छब्बीस पारे का अनुवाद कर चुके हैं. अभी एक दिन में वो करीब छह घंटे अनुवाद करते हैं. उनके मुताबिक इसे पूरा होने में करीब साल भर का वक्त और लगेगा.

कुरान के बेहतर और भावपूर्ण अनुवाद के लिए उन्होंने अरबी भाषा सीखी. वो संस्कृत और अरबी भाषा में कुछ समानताएं भी पाते हैं. उन्होंने अनुवाद के लिए कई तरह के शब्दकोष का भी सहारा लिया. इनमें कुरान की छह खंडों वाली अरबी-उर्दू डिक्शनरी के साथ-साथ अरबी-अंग्रेजी और अरबी-उर्दू डिक्शनरी शामिल हैं |

रामप्रिय शर्मा ने ज्यादातर शब्दशः अनुवाद करने की कोशिश की है लेकिन कहीं-कहीं उन्हें भावानुवाद भी करना पड़ा. खासकर कुरान में जहां-जहां मुहावरों का इस्तेमाल है.

उनके अनुसार जीवन दर्शन में कुरान और गीता में बहुत साड़ी समानताएं हैं |

उन्होंने कुरान के साथ-साथ रामायण, गीता, वेद, उपनिषद और पुराण का भी अध्ययन किया है. वो कुरान और हिंदू धर्म ग्रंथों में मौजूद समानताएं बताते हुए कहते हैं, ‘इस्लाम शब्द का अर्थ ही अल्लाह की इच्छा के प्रति संपूर्ण समर्पण है. जबकि, गीता में भी सर्वस्व समर्पण की पुरजोर विवेचना की गई है. जीवन दर्शन में भी कुरान और गीता में समानताएं हैं. दोनों नेक काम, सत कर्म करने के लिए कहते हैं.|

रामप्रिय के मुताबिक उन्हें कुरान के अंतिम हिस्सों के अनुवाद में ज्यादा मेहनत करनी होगी क्यूंकि इसमें छोटी-छोटी सूत्रात्मक आयतें हैं लेकिन उन्हें विश्वास है की जल्द से जल्द इस काम को वे पूरा कर लेंगे|

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