Magahi poem
देख निमन्त्रण कार्ड देह से, टपके लगे पसीना
नेवता पुरते-पुरते हमरा, मोस्किल हो गेल जीना.
मँहगाई के समय हको, तों जइहा बनके पकिया
चुपके-चुपके देबे पड़तो, कम से कम सौ टकिया
ओकरा से कम देला पर, झुकतो ईज्जत के झंडा
बंद लिफाफा खुलते जब, फुट जइतो तोहर भंडा.
मुरगा के काउंटर पर मिलते, टीसन जैसन भीड़
बड़का-बड़का पहलवान के, फुट जा हे तकदीर
पुड़ी आउर पोलाव फ्री हो, चटनी हो मनमनता
आईसक्रिम के काउंटर पर, सुमरे पड़तो हनुमंता.
पूरी कविता दिए गए चित्र में देखें)
कवि- उदय शकर शर्मा (कवि जी )