चंडिका स्थान एक अत्यंत प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो बिहार राज्य के मुंगेर जिले में स्थित है। यह मंदिर देवी शक्ति को समर्पित है और इसे हिंदू धर्म में 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मुंगेर शहर के उत्तर-पूर्वी कोने में, चंडिका स्थान महज दो किलोमीटर की दूरी पर है, जिससे यह स्थान भक्तों के लिए सुलभ है। चंडिका स्थान को सिद्धि-पीठ माना जाता है, जो इसे अन्य धार्मिक स्थलों के मुकाबले एक विशेष महत्व प्रदान करता है। इसे गुवाहाटी के कामाक्ष्या मंदिर के बराबर माना जाता है, जो कि देवी शक्ति की आराधना का एक प्रमुख केंद्र है।
धार्मिक महत्व
चंडिका स्थान की धार्मिक महत्ता इसकी पौराणिक कहानियों और भक्तों की आस्था से परिभाषित होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से पूजा करते हैं, उनकी हर मुराद पूरी होती है। यहाँ की मान्यता है कि देवी सती की बाईं आंख इस स्थान पर गिरी थी, और इसी कारण यहाँ आने वाले भक्तों को आंखों की बीमारियों से राहत मिलती है। चंडिका स्थान न केवल स्थानीय भक्तों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह बिहार के अंग प्रदेश क्षेत्र में एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित है।
दंतकथा
चंडिका स्थान से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया, तो भगवान शिव अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गए। शिव ने सती के शव को लेकर भटकना शुरू किया। इस भटकाव के दौरान, सती की बाईं आंख गिर गई, जो बाद में चंडिका स्थान बन गई। यह कथा इस स्थान के महत्व को दर्शाती है और इसे शक्ति पीठ के रूप में स्थापित करती है। यह भी कहा जाता है कि विभिन्न शक्ति पीठों में से चंडिका स्थान आंखों की परेशानियों के इलाज के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
शक्ति पीठ के रूप में
चंडिका स्थान मंदिर को एक शक्ति पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह शक्ति पीठ देवी सती के आत्मदाह की पौराणिक कथा से संबंधित है। शक्ति पीठों की अवधारणा हिंदू धर्म में देवी शक्ति की उपासना से जुड़ी है, और चंडिका स्थान इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है। यहाँ आकर भक्त देवी चंडी की आराधना करते हैं और अपने जीवन की कठिनाइयों से राहत पाने की प्रार्थना करते हैं। यह मंदिर शक्ति और शांति का प्रतीक माना जाता है।
राजा कर्ण की किंवदंती
चंडिका स्थान से जुड़ी एक अन्य प्रसिद्ध किंवदंती प्राचीन भारतीय राज्य अंगा के राजा कर्ण के बारे में है। कहा जाता है कि राजा कर्ण प्रतिदिन देवी चंडी माता की पूजा करते थे और इसके फलस्वरूप उन्हें देवी की कृपा से 114 पाउंड सोना मिला। राजा ने इस सोने का वितरण जरूरतमंदों और दलितों के बीच किया। इस स्थान का नामकरण करणचौरा हुआ, जो इस क्षेत्र का एक स्थानीय नाम बन गया। यह कहानी इस स्थान की भक्ति और सामाजिक दायित्व की भावना को दर्शाती है।
स्थान विवरण
चंडिका स्थान, आईटीसी लिमिटेड, बासुदेवपुर, मुंगेर से लगभग 1 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर की सुलभता इसे दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए आकर्षक बनाती है। निकटतम रेलवे स्टेशन मुंगेर जंक्शन है, जबकि निकटतम हवाई अड्डा पटना हवाई अड्डा है। इसके अलावा, देवघर हवाई अड्डा भी समीप है।
मंदिर की संरचना और पूजा पद्धति
चंडिका स्थान मंदिर का निर्माण भव्यता और आकर्षण के साथ किया गया है। मंदिर की सजावट और समारोह विशेष रूप से नवरात्रि जैसे त्यौहारों के दौरान अद्वितीय होती है। भक्तगण यहाँ आकर देवी चंडी की पूजा करते हैं, जिसमें अभिषेक, आरती और हवन शामिल होते हैं। नवरात्रि के दौरान, भक्तों की भारी भीड़ लगती है और मंदिर में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं।
निष्कर्ष
चंडिका स्थान एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ भक्तों की आस्था और विश्वास की गहराई झलकती है। यह स्थान न केवल पूजा का स्थल है, बल्कि इसे अनेक किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता है। यहाँ की भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक एकता की भावना इसे और भी विशेष बनाती है। चंडिका स्थान एक ऐसा स्थल है जहाँ भक्ति और श्रद्धा का अनूठा संगम होता है, जो भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
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