बिहार के सहरसा जिले में स्थित मां उग्रतारा मंदिर एक प्राचीन और शक्तिशाली स्थल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना लगभग 700 साल पहले हुई थी, और यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ देवी उग्रतारा के बाल रूप की पूजा की जाती है, जो इसे अन्य शक्तिपीठों से अलग करती है।उग्रतारा स्थान सहरसा से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह स्थल सालभर श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र बना रहता है। विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों और हर मंगलवार को यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो माता के दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हैं।
शास्त्रार्थ की ऐतिहासिक घटना
उग्रतारा स्थान की ऐतिहासिक मान्यता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी धार्मिक। इस स्थान पर मंडन मिश्र की पत्नी और विदुषी भारती के साथ आदि शंकराचार्य का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ हुआ था। यह शास्त्रार्थ भारतीय दर्शन और तर्कशास्त्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज है। इस शास्त्रार्थ में आदि शंकराचार्य को विदुषी भारती के समक्ष पराजित होना पड़ा था, जो इस स्थान की विद्वता और पांडित्य का प्रतीक है। यह घटना आज भी धार्मिक और तात्त्विक अध्ययन में महत्वपूर्ण मानी जाती है, और इसने उग्रतारा स्थान को विशेष पहचान दिलाई है।
शक्ति पुराण और सिद्धपीठ की मान्यता
शक्ति पुराण के अनुसार, जब शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण कर रहे थे, तब पूरे ब्रह्मांड में प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां सिद्धपीठों का निर्माण हुआ। उग्रतारा स्थान के बारे में मान्यता है कि यहाँ सती का बायां नेत्रभाग गिरा था, जिसके कारण यह स्थान एक महत्वपूर्ण सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहाँ माता उग्रतारा की पूजा-आराधना की जाती है, जो अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महिषी स्थित उग्रतारा स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह बिहार के सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। यहाँ की पूजा पद्धति और अनुष्ठान हजारों वर्षों से चलते आ रहे हैं और स्थानीय जनमानस में इसका विशेष महत्व है। नवरात्रि के दौरान यहाँ भव्य आयोजन होते हैं, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के लिए आते हैं। नवरात्रि के अलावा, हर मंगलवार को विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो यहाँ की धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं।
उग्रतारा स्थान का स्थापत्य और पहुँच
मंदिर की संरचना प्राचीन भारतीय वास्तुकला की झलक देती है। मंदिर की बनावट और उसमें की गई नक्काशी इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता को और भी अधिक स्पष्ट करती है। महिषी तक पहुँचना आसान है और यह सहरसा से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण, यह स्थान बिहार में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है।
उग्रतारा स्थान महिषी: एक ऐसा पवित्र स्थल जहाँ श्रद्धा, भक्ति और संस्कृति का संगम होता है, और माता उग्रतारा के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
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