भागलपुर के अकबरनगर में एक प्राचीन माता का मंदिर है, जिसकी उम्र लगभग 70 वर्ष है। यह मंदिर भक्तों के लिए खास माना जाता है, क्योंकि यहां दर्शन करने के बाद उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। जब उनकी मन्नत पूरी होती है, तो लोग दूर-दूर से माता के दरबार में आकर श्रद्धा अर्पित करते हैं। मंदिर का निर्माण कार्य 1952 से शुरू हुआ और तब से यह स्थान भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
अकबरनगर बाजार में स्थित मां दुर्गा का मंदिर भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां हर साल मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करते हैं, उनकी हर मुराद पूरी होती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले यहां पूजा नहीं होती थी, लेकिन जब भक्तों की मन्नतें पूरी होने लगीं, तब आस्था के साथ पूजा का आयोजन शुरू हुआ। इसके बाद पुजारी और स्थानीय लोगों ने मिलकर मां की प्रतिमा स्थापित की। 1952 से यहां मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की गई थी, और तब से पूजा का यह क्रम जारी है।
डलिया चढ़ाने की परंपरा
जब प्रतिमा की स्थापना की गई, तब मां दुर्गा के मंदिर का निर्माण संभव नहीं हो सका। समाज के बुद्धिजीवियों के प्रयासों से 1962 में मंदिर का निर्माण कराया गया। बताया जाता है कि इस कार्य में भक्त छेदी झा का महत्वपूर्ण योगदान था, जिसके कारण मंदिर की नींव रखी जा सकी। इस मंदिर में साल में दो बार प्रतिमा स्थापित की जाती है, और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
विशेषकर नवमी और दशमी के दिन अकबरनगर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। मां के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, और यहां डलिया चढ़ाने की परंपरा भी है।
नए मंदिर निर्माण का प्रयास
अकबरनगर बाजार स्थित दुर्गा मंदिर 70 साल पुराना हो चुका था, जिससे भक्तों को पूजा में कठिनाई होती थी। इस समस्या का समाधान करते हुए, आसपास के गांवों के लोगों ने एक भव्य दुर्गा मंदिर बनाने का संकल्प लिया और नए मंदिर की नींव रखी। एक साल बाद बुद्धिजीवियों के सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया गया, जिसने एकजुटता और भाईचारे की मिसाल कायम की। इसके बाद कोलकाता से संगमरमर की दुर्गा प्रतिमा स्थापित की गई।
यह सार्वजनिक दुर्गा मंदिर अपनी बेहतरीन सजावट के लिए प्रसिद्ध है। दूर-दूर तक रंग-बिरंगे बल्ब, आकर्षक पंडाल और जगह-जगह तोरणद्वार बनाए जाते हैं।
पूजा के दौरान संध्या समय दीप जलाने के लिए विशेषकर महिलाओं की भीड़ उमड़ती है। नवमी और दशमी के दिन भव्य मेला लगता है, और प्रतिमा निर्माण के लिए कल्याणपुर से मूर्तिकार बुलाए जाते हैं।
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