नवादा जिले के रोह प्रखंड के रूपौ गांव में स्थित मां चामुंडा मंदिर का इतिहास अत्यंत पुराना है। यह माना जाता है कि यहां पर शुंभ और निशुंभ, दो राक्षस भाई, निवास करते थे, जिनका वध मां चामुंडा ने किया था। यह स्थान मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर, एक पहाड़ी पर स्थित जंगल में है, जिसे सिधेश्वर स्थान कहा जाता है।
मंदिर का महत्व
मां चामुंडा शक्तिपीठ, धर्म शास्त्रों में उल्लेखित शक्तिपीठों में से एक है। यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, मां सती का धड़ यहां गिरा था, जो इस स्थान को विशेष बनाता है।
सप्तमी के दिन, मां चामुंडा शक्तिपीठ में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। साल भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या में विशेष वृद्धि होती है। इस अवसर पर, दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर पूजा करते हैं।
श्रद्धालुओं की राय
श्रद्धालुओं का कहना है कि जब वे मां चामुंडा के दरबार में अपनी मनोकामनाओं के साथ आते हैं, तो उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। एक श्रद्धालु मीना देवी का कहना है, “माता के दरबार में जो मनोकामना सोचकर आते हैं, वो पूरी होती है। माता की कृपा से दुःख दूर हो जाता है।”
मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। पंडित श्रीकांत पांडेय के अनुसार, मां चामुंडा का उल्लेख दुर्गा सप्तशती में भी मिलता है। यहां मान्यता है कि 52 शक्तिपीठों में से एक अंग यहां गिरा था।
सिधेश्वर स्थान, जहां शुंभ-निशुंभ का वध हुआ था, इसे सुम्बा पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
पंडित शम्भू शरण बताते हैं कि चण्डमुण्ड संघरणी माता का यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। भक्त यहां आकर अपनी इच्छाएं पूर्ण करते हैं, विशेष रूप से वे लोग जो संतान सुख की प्राप्ति के लिए आते हैं।
कैसे पहुंचें मां चामुंडा दरबार
मां चामुंडा के दर्शन के लिए, यदि आप रेल मार्ग से आ रहे हैं, तो आपको नवादा रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा। यहां से टोटो या रिक्शा लेकर, या पैदल भी जा सकते हैं। श्रद्धालु जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर बस स्टैंड से कौवाकोल जाने वाली वाहनों में बैठकर, चामुंडा गेट के पास उतर सकते हैं।
मां चामुंडा की महिमा अपरंपार है। यहां आकर हर जाति के लोग श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं, और यहां की महत्ता पौराणिक काल से लेकर आज तक बनी हुई है।
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