शिवहर जिले में पश्चिम दिशा से प्रवेश करती हुई बागमती नदी पूर्वी सीमा के साथ-साथ दक्षिण दिशा की ओर बहती है, जो यहां की मु़ख्य नदी भी है। इसी नदी के किनारे डूबा घाट से सटे यहां का मुख्य धार्मिक स्थल “देवकुली धाम” है। देवकुली में भगवान शिव का एक अति प्राचीन मंदिर है
मंदिर का धार्मिक महत्व
देवकुली धाम स्थित बाबा भूवनेश्वर नाथ मंदिर जिले की पौराणिक धरोहर के साथ जिले व आस-पास के लोगों के आस्था का केंद्र हैं।
द्वापर काल में निर्मित इस मंदिर में शिवहर के पड़ोसी जिलों के साथ-साथ नेपाल के लोग पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने आते है।
मंदिर के धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि मंदिर एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। इसमें स्थापित शिवलिंग भगवान परशुराम की तपस्या से प्रकट हुआ जो आदि काल से बाबा भुवनेश्वर नाथ के नाम से ही प्रचलित है। शिवलिंग के अरघा के नीचे अनंत गहराई है, जिसे मापा नही जा सकता। वही मंदिर के गुंबज के नीचे प्रस्तर में श्रीयंत्र स्थापित है। मान्यता है कि जो कोई भी जलाभिषेक के बाद श्री यंत्र का दर्शन करता है, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
मंदिर का उल्लेख
जानकारों का कहना है कि 1956 में प्रकाशित अंगरेजी गजट में इस धाम का उल्लेख किया गया था कि नेपाल के पशुपति नाथ एवं भारत के हरिहर क्षेत्र मंदिर के मध्य में देकुली बाबा भुवनेश्वर नाथ मंदिर स्थित है। कलकत्ता के हाई कोर्ट के एक अहम फैसला में भी अति प्राचीन बाबा भुवनेश्वर मंदिर देकुली धाम उल्लेखित है। ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यकाल में चैकीदारी रसीद पर भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।
पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण
मंदिर से पूरब करीब 12 फीट नीचे खुदाई करने पर ग्रेनाइट पत्थर से बना भग्नावशेष प्राप्त हुआ था, जिसके अग्रवाहु की लंबाई करीब 18 इंच से अधिक थी। पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मंदिर के खुदाई पर तत्काल रोक लगी है।
ग्रामीण बताते है कि मंदिर के पश्चिम एक तालाब है जिसकी खुदाई 1962 ई में चैतन्य अवतार जिले के छतौनी गांव निवासी महान संत प्रेमभिक्षु जी महाराज ने करायी थी। जिसमें द्वापर काल की दुर्लभ पत्थर व धातु की मूर्तियां प्राप्त हुई थी। जिसे मंदिर प्रांगण के मुख्य द्वार के दाहिने तरफ अति प्राचीन मौल श्री वृक्ष के पास स्थापित की गयी है।
मन्दिर प्रागण में अन्य मंदिर
जमीन के सामान्य स्तर से करीब 15 फीट उपर एक टिला पर अवस्थित उक्त शिव मंदिर के उत्तर-पश्चिम कोने में माता पार्वती, दक्षिण में भैरव नाथ एवं पूरब-दक्षिण कोण में हनुमान जी का मंदिर है।
पौराणिक एवं धार्मिक महत्व और कथा
इसके पौराणिक एवं धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि भगवती सीता के साथ पाणि ग्रहण संस्कार के उपरांत जिस स्थान पर राम को परशुराम के कोप का शिकार होना पड़ा वह जगह कोपगढ़ गांव के नाम से जाना जाने लगा, जहां परशुराम का मोहभंग हुआ वहां मोहारी गांव वसा हुआ है।
राम एवं परशुराम के बीच आपसी प्रतीती के पश्चात परशुराम ने राम को भुवनेश्वर नाथ अर्थात शिव के दर्शन कराये , जिस कारण शिव एवं हरि का यह मिलन क्षेत्र शिवहर के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि शिव का घर से भी शिवहर नाम प्रचलित होने की बात कही जाती है।
इस जगह का नाम देवकुली पड़ा क्यों
द्वापर काल में कुलदेव को द्रोपदी द्वारा संपूजित किये जाने के कारण इस जगह का नाम देकुली पड़ा। हालांकि इस बारे में अन्य कई काथाएं प्रचलित है।
धाम से सटे उत्तर में युधिष्ठिर के ठहरने के उपरांत 61 तालाब खुदवाये गये थे जो विभिन्न नामों से प्रचलित था, जो बागमती नदी के कटाव में अस्तित्व विहीन हो गया।