परिचय
कात्यायनी स्थान एक प्रसिद्द सिद्ध पीठ है।
अवस्थिति
यह पीठ खगड़िया जिले से लगभग 12 किमी की दूरी पर कोशी नदी के किनारे, जो मानसी -सहारसा रेल लाइन पर बदलाघाट और धामराघाट स्टेशनों के बीच,स्थित हैं।
कई मंदिर हैं परिसर में
यहाँ माँ कात्यायनी के मंदिर के साथ – साथ राम, लक्ष्मण और मा जानकी के मंदिर भी स्थित हैं। प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार, बड़ी संख्या में भक्तगण इस स्थान पर पूजा करने आते हैं।
दो रूपों में होती माँ कात्यायनी की पूजा
स्थानीय लोक परंपराओं के अनुसार, इस क्षेत्र में दो रूपों में माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। कुछ भक्त माँ कात्यायनी की पूजा सिध पीठ के रूप में करते हैं, जबकि बड़ी संख्या में भक्त गाय और भैंस के लोक देवी के रूप में पूजा करते है । यही कारण है कि भक्तगण यहाँ देवी कात्यायनी को कच्चे दूध का चढ़ावा चढ़ाते है ।इसी परंपरा के अनुसार भक्त अपने गाय को बछड़े होने पर पहला दूध चढ़ाते है ।उसके बाद ही वे दूध को अपने उपयोग में लाते है
पौराणिक कथा
1.ऐसा कहा जाता है कि ऋषि कात्यायन कौशिकी (अब कोशी) के तट पर तपस्या कर रहे थे, जब मां दुर्गा- शक्ति के देवता ने बाल रूप में ‘अवतार’ लिया और ऋषि ने उनकी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसलिए उसे कात्यायनी कहा जाता है।
2.एक और कहानी कहती है कि लगभग 300 साल पहले, यहाँ जगह घना जंगल था । एक दिन एक भक्त श्रीपत महाराज ने सपने में माँ कात्यायनी को देखा और उनके निर्देशों के अनुसार उस स्थान पर एक मिटटी का मंदिर बनाया और माँ की पूजा करना शुरू कर दिया।
पुनर्निर्माण
वर्ष 1 9 51 में, मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था।