‘किरिनियाँ कहाँ चलि जाले?
सारी सोनहुली सबेर झमका के,
सँवकेरे रूप के अँजोर छिटिका के,
जाये का बेर ढेर का अगुताले-
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
चलत-चलत बीच रहिया में हारल,
दुपहरिया तेज तिजहरिया के मारल,
धनि बँसवरिया का पाछे लुकाले!
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किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
दिनभर का जिनगी के कहते कहनियाँ,
जात कहीं फुनुगी पर छोड़त निशनियाँ,
काहे दो सकुचाले काहे लजाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
चिरई-चुरुंगवा जे लेला बसेरा,
डाले चराऊर खोंता में डेरा,
सँझलवके नदिया किनारे नहाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?