Friday, April 26, 2024
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सहरसा में अवस्थित कंदाहा का सुर्य मंदिर,

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मिथिला में बहुत सारे तिर्थस्थलों और एतिहासिक महत्व के मंदिरों है |

आज हम आपको ऐसे ही एक अद्वितीय मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जो सहरसा जिले के कन्दाहा में अवस्थित है।

कन्दाहा सहरसा जिले महिषी प्रखंड के अंतर्गत  एक छोटा सा गांव है। इस गाँव को भारत के एक प्राचीनतम और अनुपम सुर्य मंदिर के स्वामित्व का गौरव प्राप्त है। यह सहरसा जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित है |

मूर्ति के माथे के ऊपर मेष राशि का चित्र अंकित रहने की वजह से वैसे यह कहा जाता है
निर्माण
इस भव्य मंदिर के निर्माण के पीछे दो बातें सामने आती हैं  | पहली मान्यता के अनुसार इस प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में मिथिला के ओइनवर (ओनिहरा) वंश के राजा हरिसिंह देव  ने किया था|  वही महाभारत और सूर्य पुराण के अनुसार इस सुर्य मंदिर का निर्माण ‘द्वापर युग’ में हुआ ।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् कृष्ण के पुत्र ‘शाम्ब’ किसी त्वचा रोग से पीड़ित थे जो मात्र यहाँ के सूर्य कूप के जल से ठीक हो सकती थी।शहाब यहाँ आये और यहाँ न करने केबाद उनका त्वचा रोग पूर्णतः सही हो गया ।
यह पवित्र सूर्य कूप अभी भी मंदिर के निकट अवस्थित है. इस के पवित्र जल से अभी भी त्वचा रोगों के ठीक होने की बात बताई जाती है।

मंदिर की विशेषता

यह सूर्य मंदिर सूर्य देव की प्रतिमा के कारण भी अद्भुत माना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में सूर्य देव विशाल प्रतिमा है, जिसे इस इलाके में ‘ बाबा भावादित्य’ के नाम से जाना जाता है। मूर्ति के माथे के ऊपर मेष राशि का चित्र अंकित  है।प्रतिमा में सूर्य देव की दोनों पत्नियों को दर्शाया गया है।साथ ही 7 घोड़े और 14 लगाम के रथ को भी दर्शाया गया है। इस प्रतिमा की एक विशेषता यह भी है की यह बहुत ही मुलायम काले पत्थर से बनी है। । मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण लिपि अंकित है जो अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है।

मुग़ल कल में मंदिर को छति

दुर्भाग्य से अन्य अनेक हिन्दू मंदिरों की तरह यह प्रतिमा भी औरंगजेब काल में ही छतिग्रस्त कर दिया गया। इसी कारण से प्रतिमा का बाया हाथ , नाक और जनेऊ का ठीक प्रकार से पता नहीं चल पाता है।इस प्रतिमा के अन्य अनेक भागों को भी औरंगजेब काल में ही तोड़ कर निकट के सूर्य कूप में फेक दिया गया था, जो 1985 में सूर्य कूप की खुदाई के बाद मिला है।

मंदिर के जीर्णोद्धार  की अपेक्षा 

अफसोस इस बात का है की इतने प्राचीन काल के और एतिहासिक महत्व के इस मंदिर को उपेक्षित रखा गया है और पर्यटन स्थल के रूप में इसका विकास नहीं हो सका है।मेरी सरकार से आशा है की इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक कदम उठायें जाएँ

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